
Up Kiran, Digital Desk: भारत और यूरोपियन यूनियन (EU) के बीच एक बहुत बड़ी फ्री ट्रेड डील (FTA) को लेकर बातचीत का दौर जारी है. यह डील अगर हो जाती है, तो दोनों के बीच व्यापार करना बहुत आसान हो जाएगा. लेकिन भारत ने इस बातचीत में अपना रुख बिल्कुल साफ कर दिया है. सरकार का कहना है कि हमें डील करने की कोई जल्दबाजी नहीं है, "स्पीड से ज़्यादा जरूरी है संतुलन", और हम अपने किसानों और डेयरी उद्योग के हितों पर कोई भी समझौता नहीं करेंगे.
क्या है पूरा मामला और कहाँ फंसा है पेंच?
यूरोप चाहता है कि उसे भारत के विशाल डेयरी और कृषि बाजार में बिना किसी रोक-टोक के आने की इजाजत मिले. लेकिन भारत ने इन दो मुद्दों पर अपनी "रेड लाइन" यानी लक्ष्मण रेखा खींच दी .
डेयरी सेक्टर पर आंच नहीं: भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और करोड़ों लोगों की रोजी- रोटी इसी से चलती है. यूरोप की बड़ी-बड़ी डेयरी कंपनियों के लिए अगर दरवाजे पूरी तरह खोल दिए गए, तो हमारे छोटे किसानों और डेयरी वालों के लिए टिकना मुश्किल हो जाएगा.
किसानों का हित सबसे ऊपर: इसी तरह, कृषि के क्षेत्र में भी भारत कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता, जिससे हमारे देश के किसानों को नुकसान पहुंचे.
भारत ने रखी हैं अपनी भी शर्तें
भारत का कहना है कि यह डील दोतरफा होनी चाहिए. हम चाहते हैं कि:
हमारे स्किल्ड प्रोफेशनल्स जैसे इंजीनियर, आईटी एक्सपर्ट्स और नर्सों को यूरोप में जाकर काम करने में आसानी हो.
यूरोप भी हमारे सामानों पर लगने वाले भारी टैक्स और मुश्किल नियमों को कम करे.
सरकार के एक बड़े अधिकारी ने कहा, "हम चाहते हैं कि यह एक संतुलित डील हो. हम अच्छी डील के लिए मेहनत कर रहे ہन कि जल्दी में कोई भी डील करने के लिए." उनका कहना है कि पिछली सरकारों की तरह हम दबाव में आकर कोई ऐसी डील नहीं करेंगे, जिससे बाद में देश को नुकसान हो.
साफ है कि भारत इस बार पूरी तैयारी और आत्मविश्वास के साथ बातचीत की टेबल पर बैठा जहाँ देश का हित ही उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है.