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Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन की हार ने झारखंड में राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया है। खासकर, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की दिल्ली में भाजपा के एक प्रमुख नेता से मुलाकात ने नई राजनीतिक चर्चा को जन्म दिया है। कुछ सूत्रों के अनुसार, यह मुलाकात केवल एक शिष्टाचार भेंट नहीं थी, बल्कि इसने भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बीच संभावित गठबंधन की राह खोल दी है।

क्या झामुमो भाजपा से हाथ मिला सकता है?
झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें हैं और बहुमत के लिए 41 सीटों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो का एक गठबंधन सरकार है, जिसमें झामुमो को 34 सीटें, कांग्रेस को 16 सीटें, राजद को 4 और भाकपा-माले को 2 सीटें मिली हैं। इस गठबंधन को मिला कर कुल सीटों की संख्या 56 है।

अब अगर झामुमो और भाजपा के बीच गठबंधन होता है, तो समीकरण पूरी तरह से बदल जाएगा। भाजपा के पास 21 सीटें हैं और अन्य छोटे दलों जैसे लोजपा, आजसू, जदयू, आदि के साथ मिलकर यह संख्या 58 तक पहुँच जाएगी, जो बहुमत से काफी अधिक है। इस स्थिति में राज्य की सत्ता की बुनियादी संरचना में भारी बदलाव होगा।

राजनीतिक गणित में गहरा उलटफेर?
झारखंड की राजनीति में इस बदलाव के कई प्रभाव हो सकते हैं। यदि यह गठबंधन साकार होता है, तो यह एक अप्रत्याशित और ऐतिहासिक कदम होगा। पिछले विधानसभा चुनावों में हेमंत सोरेन ने भाजपा पर लगातार हमला करते हुए आरोप लगाया था कि ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) का दुरुपयोग उन्हें निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। हालांकि, अगर इस बार वे भाजपा से हाथ मिलाते हैं, तो यह राजनीति के खेल को एक नई दिशा दे सकता है।

क्या अतीत के अनुभवों से कुछ सीखा जाएगा?
झामुमो और भाजपा के बीच गठबंधन का इतिहास कुछ खास स्थिर नहीं रहा है। 2010 और 2014 के बीच दोनों दलों के बीच समर्थन वापसी और सत्ता परिवर्तन की घटनाएं झारखंड की राजनीति में उथल-पुथल का कारण बनी थीं। इस बार, अगर ऐसा कुछ होता है, तो क्या दोनों दल अपनी समझ को बनाए रख पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।