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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में दो चीजें हमेशा की स्थाई रही है। पहला तो है नीतीश कुमार। जनता चाहे किसी को भी वोट दे या सरकार चाहे जिस मर्जी गठबंधन ने बनाई हो लेकिन मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही बनते हैं।

और दूसरी वो स्थाई चीज है उनका महिला वोट बैंक। जी हां, जहां बाकी दल जातियों की गिनती में उलझे रहे, वहीं नीतीश ने आधी आबादी को साथ लेकर अपनी सत्ता की पूरी कहानी लिख डाली। साइकिल से शुरू हुई यह यात्रा अब जीविका दीदी के आर्थिक सशक्तिकरण तक पहुंच चुकी है।

शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार को बिहार में महिलाओं का मसीहा कहा जाता है क्योंकि नीतीश ने राजनीति का वो रास्ता चुना जो सीधे महिलाओं के दिल तक जाता था। तो चलिए समझते हैं कि कैसे नीतीश ने महिलाओं को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना रखा है। साल 2005 में सत्ता में आने के बाद से नीतीश कुमार ने लड़कियों और महिलाओं के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की।

महिलाओं के कल्याण के लिए ये योजनाएं शुरू की

उन्होंने मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना शुरू की जिसके तहत 40 लाख लड़कियों को स्कूल आने जाने में आसानी के लिए साइकिलें दी गई। मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना जो कि असल में साल 2006 में शुरू हुई थी लेकिन 2010 के चुनावों में भी जेडीयू ने इसे अपना एक बड़ा चेहरा बनाए रखा।

इस योजना का उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना और साथ ही माध्यमिक विद्यालय में उनके प्रवेश दर को बढ़ाना और स्कूल छोड़ने की दर को कम करना है।

जिससे कि वे स्कूल तक सुरक्षित और सुविधाजनक रूप से पहुंच सके और ठीक वैसा ही हुआ। गांव-गांव में साइकिल चलाती लड़कियां बिहार की अब एक नई तस्वीर बन गई। इसके अलावा मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना जिसका उद्देश्य बालिकाओं के जन्म के प्रति सकारात्मक सोच पैदा करना, कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, बालिकाओं के स्वास्थ्य में सुधार करना, शिक्षा को बढ़ावा देना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था।

शिक्षा की ओर उत्साहित करने के लिए और प्रोत्साहित करने के लिए कक्षा में प्रवेश लेने वाली बालिकाओं को और साथ ही इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली अविवाहित बालिकाओं को एक मु्त राशि दी गई। इसके अलावा मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना भी चलाई गई जिसका उद्देश्य था स्कूलों में उपस्थिति में आने वाली बाधाओं जैसे कि उचित कपड़ों की कमी को दूर करके बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना। इस योजना के तहत सरकारी स्कूलों में कक्षा छ से सात तक की छात्राओं को एक जोड़ी स्कूल यूनिफार्म दी गई।

फिर साल 2014 में स्कूली लड़कियों को सेनेरी नैपकिन वितरित करने की योजना भी उनके कार्यकाल में ही शुरू की गई थी और इसी तरीके से यह सिलसिला चलता रहा। साल 2015 में नीतीश कुमार ने अपना दूसरा घोषणा पत्र लाया। इस बार वादे थे हर घर नल का जल, शौचालय निर्माण, घर का सम्मान।

योजना 2016 से 17 में शुरू की गई जिसके तहत पात्र परिवारों को घर में शौचालय बनाने के लिए 12,000 की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी। हर घर बिजली और सबसे अहम महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35% का आरक्षण। सिर्फ इतना ही नहीं पंचायतों में भी महिलाओं को 50% का आरक्षण का वादा नीतीश की ओर से किया गया।

जैसे कि हजारों महिलाओं पे जो हजारों महिलाएं थी वो पहली बार निर्णय लेने के लिए कुर्सी तक पहुंची। यह वो दौर था जब महिला वोटर नीतीश का असली साइलेंट स्ट्रेंथ बन चुकी थी। फिर आया साल 2020 जब विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने फिर वही फार्मूला अपनाया महिलाओं के भरोसे जीत का रास्ता और जारी किया सात निश्चय पार्ट टू योजना।

हालांकि इसमें युवाओं को फोकस किया गया था लेकिन हम महिलाओं की बात कर रहे हैं तो महिलाओं के लिए इस बार भी नीतीश कुमार ने एक नया फार्मूला अपनाया। इस बार बात की गई सशक्त महिला सक्षम महिला जिसके तहत महिलाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना लाने की बात हुई।

जिससे यह कहा गया कि उनके द्वारा लगाए जा रहे उद्यमों में परियोजना लागत का जो 50% अनुदान के लिए रूप में दिया जाएगा तथा अधिकतम ₹5 लाख तक का ब्याज मुफ्त ऋण दिया जाएगा और इसके अलावा स्नातक पास करने पर ₹00 की आर्थिक सहायता लड़कियों को दी जाएगी। 2020 के चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत की अगर हम बात करते हैं तो 59.7% रहा।

नीतीश कुमार नया दांव

जबकि पुरुषों का 54.6% यानी नीतीश की सत्ता की बुनियाद फिर से महिलाओं के कंधों पर टिकी रही। और अब बात करते हैं मौजूदा वक्त की। साल 2025 की जिसमें कि जीविका दीदी के भरोसे फिर मिशन महिला। इस बार चुनावों से ठीक पहले नीतीश सरकार ने अपना एक नवा दांव चला है।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना इस योजना के तहत हर परिवार की एक महिला को 10,000 की प्रारंभिक आर्थिक सहायता दी जाएगी। आगे चलकर लाखों रुपए तक का बिजनेस लोन और ट्रेनिंग सपोर्ट भी इस योजना के तहत महिलाओं को मिलेगा।

तो समझा आपने कि कैसे साइकिल से लेकर स्वरोजगार तक, शौचालय से लेकर सरकारी नौकरी तक। नीतीश कुमार की हर राजनीति की धुरी महिला ही रही है। शायद यही वजह है कि बिहार में नीतीश के लंबे शासन का सबसे मजबूत स्तंभ महिलाएं ही मानी जाती है।

क्योंकि पलायन और नौकरी की वजह से चुनाव में पुरुषों की भागीदारी बिहार में कम ही रहती है। इसीलिए आज भी कहीं ना कहीं सबसे मजबूत वोट बैंक कोई जाति नहीं बल्कि वह आधी आबादी है जिसने साइकिल से निकलकर सत्ता की चाबी तक का सफर तय किया है।

और अब ऐसा माना जाता है कि जब तक यह चाबी नीतीश के हाथ में है। जब तक यह चाबी नितीश के पास है उनकी सत्ता के दरवाजे खुले रहेंगे।