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धर्म डेस्क। सनातन परंपरा में वर्ष की सभी तिथियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं और सभी का अपना अपना स्वभाव भी है। कुछ तिथियों जैसे पूर्णिमा व अमावस्या एकादशी को विशेष माना जाता है और इस दिन लोग व्रत आदि रखते हैं। ऐसे ही एक तिथि है भाद्रपद पूर्णिमा। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है।भाद्रपद या भादौं मास की पूर्णिमा से ही पितृ पक्ष प्रारंभ होता है। इस वर्ष पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है। पितृ पक्ष का प्रारंभ चंद्र ग्रहण से होना अशुभ माना जा रहा है। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा का प्रारंभ 17 सितंबर दिन मंगलवार को प्रातः 11 बजकर 44 मिनट पर और समापन 18 सितंबर दिन बुधवार को प्रातः  8 बजकर 4 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर भाद्रपद पूर्णिमा 18 सितंबर को मानी जाएगी। इसी दिन पूर्णिमा का स्नान दान करना शुभ होगा। लक्ष्मी पूजन और चंद्रमा की पूजा करने वाले लोगों के लिए 17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत करना उचित रहेगा। 

उल्लेखनीय है कि भाद्रपद पूर्णिमा से ही पितृ पक्ष भी प्रारंभ होता है, इसलिए इस दिन भगवान विष्‍णु के साथ पितरों के निमित्‍त भी पूजन-अनुष्‍ठान करना चाहिए। ऐसा करने से पितृगण प्रसन्‍न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। अगले दिन अर्थात क्वार कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पितरों का श्राद्ध आदि करें। 

भादौं पूर्णिमा को माता लक्ष्‍मी की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन विष्णु स्तुति का पाठ करने से जीवन में आ रही सभी तरह की बाधाएं दूर होती हैं।

धर्म शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा के दिन घर में गंगाजल का छिड़काव करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करने व सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन पति-पत्नी द्वारा चंद्रमा को दूध का अर्घ्य देने से दांपत्य जीवन में आ रही सभी प्रकार की परेशानियां छूमंतर हो जाती हैं। 

लोक मान्यता के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान व दान देने से पितरों और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसी तरह माना जाता है कि इस दिन पीपल के पेड़ तले दीपक जलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं। 
 

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