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कानपुर की सड़के कड़कती धूप में भी भीग गए। लोग हैरत में पड़ गए कि ये कैसे हो गया। ऐसी बारिश जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी लेकिन फिर झमझम आकर बरसात आखिर ये कैसे? लेकिन आप हैरान मत होइए। हम आपको बताते हैं कि ये पूरा खेल क्या है।

दरअसल बिन मौसम और बिन बादल बरसात प्राकृतिक नहीं बल्कि इंसानों द्वारा की गई। हाँ आर्टिफिशल बरसात। बाबा के गढ़ उत्तर प्रदेश के कानपुर आइआइटी के छात्रों ने कमाल कर दिया है।

आइआइटी कानपुर के शोधकर्ता आप जरुरत पडने पर देश के किसी कोने में बारिश करवा सकते हैं। ये बारिश नेचुरल बारिश नहीं बल्कि हाँ आर्टिफिशल बारिश है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यहाँ आर्टिफिशल  बारिश कैसे होती है।

तो बता दें कि आर्टिफिशल बारिश कराने के लिए जो प्रोसेस होता है उसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। इस प्रसीजर के तहत आप आर्टिफिशल बारिश से कहीं भी किसी बारिश करा सकते हैं।

इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए कानपुर आइआइटी को छह साल लग गए। अब तक बारिश तब होती थी जब आसमान में काले बादल खेल लेते थे। बिजली कड़कती थी। तब कहीं जाकर बारिश होती थी। लेकिन क्लाउड सीडिंग के जरिए कभी भी कहीं भी बारिश कराई जा सकती है।

सबसे बड़ी बात इसके मदद से इंसान अब सूखे और प्रदूषण जैसी समस्या से आसानी से निपट सकेगा।

दरअसल क्लाउड सीडिंग के दौरान एक विमान से ढेर सारे क्लाउड सीड बादलों में बिखेर दिए जाते हैं। जिसके बाद आसमान में बादल भर जाते हैं और फिर कुछ देर बाद बारिश हो जाती है। हालांकि ये प्रक्रिया बेहद मुश्किल है।

अब आपको चलिए आपको बता दे कि क्लाउड सीडिंग तैयार कैसे किया जाता है। आपको बता दें कि इन क्लाउड सीट्स को साइंटिफिक तरीके से तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए इसमें सुखी बर्फ, नमक, सिल्वर आयोडाइड समेत कई तरह के केमिकल मिलाये जाते हैं।

फिर से तैयार करके विमान के जरिए आप आसमान में फैला दिया जाता है। ये पूरी प्रक्रिया एक तरह की खेती जैसी होती है इसलिए इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है।

 

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