पराली मैनेजमेंट से जहां भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है, वहीं फसलों की पैदावार में भी इजाफा होता है। इसके उल्टा खेतों में पराली के अवशेष जलाने से जहां जमीन की सेहत खराब होती है, वहीं कई तरह के मित्र कीट भी आग का शिकार हो जाते हैं। यह सारा अनुभव बीते सालों में खेतों में पराली प्रबंधन के सार्थक परिणामों से आया है। ये कहना है जालंधर के अलावलपुर कस्बे के करीब गांव सिकंदरपुर के प्रगतिशील किसान गुरभेज सिंह का।
मीडिया से खास बातचीत में गुरभज सिंह ने बताया कि उनके पास लगभग 55 एकड़ खेती है और वह 15 साल से अपने खेतों में पराली की संभाल कर रहे हैं और उन्होंने कभी भी पराली को आग नहीं लगाई है। इसका नतीजा अब प्रत्यक्ष रूप में उनके सामने आ गया है। गुरभज सिंह कहते हैं कि वह 55 एकड़ में से 55 प्रतिशत में गन्ना और 30 प्रतिशत में आलू बोते हैं. इसके अलावा वे गेहूं, धान और मक्का की भी खेती करते हैं। जिन खेतों में पीली पाली है, वहां पराली दबाने से गेहूं, आलू व अन्य फसलों के उत्पादन में भी इजाफा हुआ है। साथ ही फसलों में लगने वाले पानी की खपत भी कम होती है।
उन्होंने कहा कि जो किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं, उन लोगों से अपील है कि वे थोड़ा और प्रयास करके खेतों में पराली का उचित प्रबंधन करके पर्यावरण को प्रदूषण से बचा सकते हैं। जमीन की उर्वरता में उत्पादन बढ़ाकर किसान समृद्ध जीवन जी सकते हैं।
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