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जिसने नेपाल को लड़ना सिखाया, जिसने नेपाल क्रिकेट को बुलंदियों तक पहुंचाया, वह कप्तानों का कप्तान था। वह गोरखाओं की शान था। आज युवाओं को क्रिकेट की बागडोर सौंप खुद सम्मान से हो गया विदा। थम गया नेपाल के लीजेंड का क्रिकेट का सफर। ज्ञानेंद्र मल्ला ने ले लिया नेपाल क्रिकेट से संन्यास। उसने नेपाल के क्रिकेट को 17 साल दिए। जब जरूरत पड़ी तब बल्लेबाजी की। जब जरूरत पड़ी तो गेंदबाजी की और जब जब टीम को जरूरत महसूस हुई विकेटकीपिंग करने से भी उसने गुरेज नहीं किया।

क्रिकेट जिसके खून में बसता है, नेपाल क्रिकेट को बुलंदियों पर पहुंचाने का उसे जुनून था। उसने टीम को तब लड़ना सिखाया जब न तो नेपाल के पास उम्दा क्रिकेटर हुआ करते थे, न क्रिकेट के मैदान थे और न ही क्रिकेट का साजो सामान था। नेपाल के सबसे सफलतम कप्तानों का जब जब जिक्र आएगा तब तब ज्ञानेंद्र मल्ल का नाम सम्मान के साथ लिया जाएगा। ज्ञानेंद्र मल्ला ने 10 वनडे में नेपाल की कप्तानी की जिसमें छह जीत मिली। टी ट्वंटी ने 12 टी ट्वंटी खेले जिसमें 9 में जीत हासिल की।

2014 टी ट्वंटी वर्ल्ड कप में नेपाल के हांगकांग के खिलाफ शुरुआती मैच में 80 रन की जीत में सबसे अहम भूमिका ज्ञानेंद्र मल्ला ने निभाई थी। ज्ञानेंद्र मल्ला ने नेपाल के लिए पहला वनडे अर्धशतक जमाने वाले वह पहले बल्लेबाज बने थे। 

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