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JNU में चार साल बाद छात्रसंघ के चुनाव में लेफ्ट ने अपना दबदबा बरकरार रखा। इलेक्शन में अध्यक्ष पद पर लेफ्ट के धनंजय, उपाध्यक्ष पद पर अविजीत घोष, महासचिव पद पर प्रियांशी आर्या और संयुक्त सचिव पद पर मोहम्मद साजिद ने जीत हासिल की। लेफ्ट की जीत के साथ ही उनके सपोटर छात्रों ने हाथों में लाल और सफेद झंडे लहराकर अपने प्रेजिडेंट का स्वागत किया। इतना ही नहीं झंडों के साथ लाल सलाम का नारा देकर यह बता दिया कि JNU में लेफ्ट का दबदबा कायम रहेगा।

दरअसल, 24 मार्च को चुनावी नतीजों में करीब तीन दशकों यानी 28 सालों के बाद लेफ्ट समर्थित ग्रुप को पहला दलित अध्यक्ष मिला है। प्रेजिडेंट धनंजय बिहार गया के रहने वाले हैं और बत्तीलाल बैरवा के बाद वामपंथी दल के पहले दलित प्रेजिडेंट है।

टॉप तीन यूनिवर्सिटीज में आता JNU का नाम

विश्वविद्यालय कैंपस में लाल सलाम के नारे के साथ इससे जुड़े बीते कई विवाद आंखों के सामने घूमने लगते हैं। हालांकि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने देश को कई अर्थशास्त्री, इतिहासकार, शिक्षाविद दिए हैं। एनआईआरएफ रैंकिंग में भी JNU निरंतर टॉप तीन यूनिवर्सिटीज में शामिल रहता है। लेकिन यह JNU का दुर्भाग्य ही है कि इसकी चर्चा शैक्षणिक गतिविधियों से ज्यादा विवादों की वजह से होती है।

JNU परिसर में कभी महिषासुर की पूजा की गई तो कभी दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों के बलिदान पर जश्न मनाया गया। हद तो तब हो गई जब परिसर में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाए गए। इस मामले से जुड़े कन्हैया कुमार को तो आप भूले नहीं होंगे, जिन पर नौ फरवरी दो हज़ार 16 को एक कश्मीरी अलगाववादी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी देने के खिलाफ JNU में एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। JNU आज तक इस प्रकरण से उभर नहीं पाया है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, JNU में रेलवे रिजर्वेशन काउंटर का उद्घाटन करने के लिए मुरली मनोहर जोशी को कैंपस में नहीं जाने दिया गया था। उस वक्त केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री थे। वामपंथी विचारधारा वाले छात्रों के विरोध की वजह से उनको वापस लौटना पड़ा था। जबकि इसके कुछ दिन पहले ही अलगाववादी नेता यासिन मलिक ने कैंपस में बैठक की थी।

76 सीआरपीएफ की शहादत पर मनाई थी खुशी

आपको बताते हैं कि JNU विवादों का सिलसिला कितना पुराना है। साल दो हज़ार 10 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के हमले में 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे। तब आरोप लगा था कि सैनिकों की शहादत पर वामपंथी छात्र संगठनों ने खुशी मनाई थी। इसके अलावा साल दो हज़ार 14 में JNU में महिषासुर बलिदान दिवस नाम से कार्यक्रम आयोजित किया गया था। तब भी आरोप लगा था कि जो पर्चे बांटे गए थे, उसमें देवी दुर्गा के बारे में आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था।

JNU में फरवरी साल दो हज़ार 16 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर कार्यक्रम आयोजित किया गया था। तब भी आरोप लगे थे कि उस दौरान JNU में देश विरोधी नारे लगाए गए थे। अब एक बार फिर JNU चुनाव में लेफ्ट की जीत और दलित अध्यक्ष धनंजय का वेलकम उनके समर्थकों ने लाल सलाम से किया। हाथों में लाल और सफेद झंडे लिए JNU कैंपस लाल सलाम के नारों से गूंज उठा। अब देखना यह है कि चार साल बाद हुए चुनाव में JNU में कोई नया विवाद होता है या नहीं।

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