कानपुर। कानपुर का चौबेपुर थाना पुलिस नहीं बल्कि विकास दुबे चलाता था। चौबेपुर थाने के ज्यादातर दरोगा-सिपाही पार्टियां करते रहते थे। विकास ने पुलिस के लिए मटन-चिकन और शराब के इंतजाम के लिए बाकायदा मैंनेजर तैनात कर रखे थे। जो पुलिसवालों की पसंद के मुताबिक तैयारी और व्यवस्था करते थे। बदले में विकास दुबे थाने में बैठ कर इलाके के मामले निपटाता था। वहीं तय करता था कौन सी तहरीर दर्ज होगी। किस तहरीर की भाषा बदली जाएगी। कौन सी तहरीर फाड़ कर डस्टबिन में डाली जानी है। यह खुलासा एसआईटी की जांच रिपोर्ट में हुआ है। 37 पुलिस कर्मियों के नाम सामने आए हैं। जिसमें से आठ पुलिस कर्मियों पर बर्खास्तगी की तलवार लटक रही है। 6 पुलिस कर्मियों का डिमोशन हो सकता है। शेष बचे 23 पर विभागीय कार्रवाई तय मानी जा रही है।
एसआईटी रिपोर्ट में दोषी पाए गए पुलिसवालों में ज्ययादातर कभी न कभी चौबेपुर में तैनात रहे हैं। विकास गैंग के ढेर होने के बाद ऐसे पुलिस वालों के कारनामे अब चर्चा में हैं। ऐसे ही एक दरोगा की विकास से गजब की यारी थी। यह दरोगा पहले चौबेपुर में ही हेड मुर्हिरर था। जब दरोगा बना तब दो माह के लिए ट्रांसफर हुआ, मगर फिर अपना ट्रांसफर चौबेपुर करा लिया। उसके बाद वह एक साल तक बिकरू हल्का इंचार्ज रहा। वह विकास दुबे के मैनेजर की तरह काम करता रहा। उसके लिए होली-दीवाली के कपड़े तक विकास खरीदता था। सूत्रों के मुताबिक 2 जुलाई की रात जब बिकरूकांड हुआ, यह दरोगा भी दबिश टीम में शामिल था। मगर जैसे ही गोलियां चलनी शुरू हुईं, वह निकल भागा।
इलाके के इंचार्ज पर खास मेहरबानी
बिकरू इलाके के हल्का इंचार्जों पर विकास दुबे की खास मेहरबानी रहती थी। घटना के समय यहां हल्का इंचार्ज केके शर्मा था। जो वर्तमान में जेल में बंद है। उससे पहले दूसरा दरोगा इस इलाके का इंचार्ज था। दोनों ही मटन के शौकीन थे। विकास को करीब से जानने वाले सूत्रों के मुताबिक ऐसे पुलिसवालों के लिए विकास दुबे ने अपने गुर्गे रार्म ंसह को व्यवस्था सौंप रखी थी। शराब का मैनेजर अमर दुबे था। शिवली के शराब ठेकों से उसे भरपूर सप्लाई मिलती थी। यह दुकानें भी विकास के रसूख से ही तृप्त रहती थीं। उन्हें शराब के बदले रुपए नहीं दिए जाते थे।
होली-दिवाली पर दो लोडर शराब
होली दिवाली पर विकास दुबे के गांव में दो लोडर देशी और एक लोडर अंग्रेजी शराब आती थी। बिकरू, भीटी, कंजती, बाचीपुर, देवकली, कांशीराम निवादा, डिब्बा निवादा, सुज्जा निवादा, मदारीपुरवा, जोगिन डेरा आदि गांवों के लफंगों को यह विकास का तोहफा था। अंग्रेजी शराब ज्यादातर पुलिस वाले और कुछ खास गैंग सदस्य पीते थे। विकास के गुर्गों की तरह काम करने वाले पुलिसवालों को होली-दिवाली पर बड़े तोहफे दिए जाते थे। यह काम विकास खुद मैनेज करता था।
सिपाहियों पर भी खास मेहरबान
बीट सिपाहियों की जरूरतों का ख्याल रखने का जिम्मा विकास ने लकड़ी और खनन के धंधेबाजों को सौंप रखा था। विकास के खिलाफ गुमनाम रहकर शिकायतें करने वाले एक सूत्र ने बताया कि यह सूचना उसने कई बार अफसरों तक पहुंचाई पर कुछ न हुआ। बिकरू बीट के ज्यादातर सिपाही लकड़ी ठेकेदारों के जरिए विकास से बख्शीशें लेते रहे। यह भुगतान करने जिम्मा विकास ने इलाके के खनन ठेकेदारों को सौंप रखा था।
थाने में लगती थी सभा
एसआईटी की जांच में चौबेपुर थाने के तीन पूर्व थानेदार दोषी पाए गए हैं। यह तीनों 2003 से लेकर 2007 के बीच में थानेदार रहे हैं। यह तीनों कुख्यात बदमाश विकास दुबे के इसक कदर भक्त थे कि जब तक यह थाने में रहे, विकास वहीं बैठकर पंचायत करता था। वहीं पर लोगों को बुलाकर उसी के अनुसार पुलिस कार्रवाई करती थी।
बिकरू हत्याकांड के वक्त तत्कालीन एसओ विनय तिवारी और दरोगा केके शर्मा पर दबिश की मुखबिरी करने का आरोप लगा था। फिलहाल दोनों माती जेल में बंद हैं। इसके साथ ही चौबेपुर थाने में तैनात रहे एसआई अजहर इशरत, एसआई कुंवरपाल सिंह, एसआई विश्वनाथ मिश्रा, एसआई अवनीश कुमार सिंह, सिपाही राजीव कुमार और सिपाही अभिषेक कुमार की बर्खास्तगी तय मानी जा रही है।