मायावती और अखिलेश के रुख से गठबंधन की ओर बढ़ा विपक्ष, अब…

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लखऩऊ ।। राजनीतिक रूप से सपा-बसपा के होने वाले चुनावों में गठबंधन की संभावना है। इन्हीं चर्चाओं आज हम आपको बताएंगे ऐसी वह 5 बातें जो दर्शाती हैं कि अगर 2019 के लोकसभा में पीएम मोदी का विजय रथ रोकना है तो इन 2 दलों को गठबंधन के साथ ही मैदान में आना होगा।

1-  14 अप्रैल 2018 को डॉ. अंबेडकर की 126वीं जयंती के शुभ अवसर पर मायावती ने एेलान करते हुए कहा कि किसी भी धर्म निरपेक्ष पार्टी के साथ हम गठबंधन सम्मानजनक सीट संख्या मिलने पर ही करेंगे, वर्ना पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी। मायावती के इस बयान के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी सहमति जाहिर की। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे रिश्ते किसी से खराब नहीं हैं। कोई रिश्ता बनाए, तो सबसे पहले हम रिश्ता बना लेते है।

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2-  गत वर्ष 2017 में यूपी विधानसभा चुनावों में मायावती ने जिस तरह पार्टी की हार का ठीकरा EVM पर फोड़ा और उसके बाद यूपी सहित पूरे देश में बैलेट से चुनाव कराने की मांग की, उनकी इस मांग और आरोप के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश भी उनकी इस मांग के समर्थन में दिखे।

3-  मायावती पर हमेशा से ही यह आरोप लगते रहे हैं कि वो रैलियों के अलावा जनता से सीधे मुखातिब नहीं होती हैं लेकिन, सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों के साथ हुई हिंसा ने मायावती को उनके बीच जाने को मजबूर कर दिया। तो वहीं अखिलेश भी इस घटना में पीड़ितों का दर्द समझते हुए सहारनपुर अपना प्रतिनिधिमंडल भेजते हैं और घटना को लेकर BJP को दोषी ठहराते हैं।

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4-  दोनों ही पार्टी प्रमुखों के लिए जो सबसे बड़ी चिंता का विषय है वो है मुस्लिम वोटों का बिखराव रोकना। और 2019 में दोनों ही पार्टी नहीं चाहती हैं कि उनके टकराव में मुस्लिम वोटों का बिखराव हो।

5-  विधानसभा चुनावों में BJP की जीत की रफ्तार को थामना सप-बसपा ही का मेन मकसद है। जिसके तहत दोनों ही पार्टी दलित, पिछड़ा, मुस्लिम और उदारवादी सवर्णों के जरिए 2019 में BJP का विजय रथ रोकने की रणनीति पर काम कर रही हैं। दोनों ही पार्टी का एक ही पैटर्न पर काम करना कहीं न कहीं मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक माहौल को देखते हुए दोनों दलों के मुखियाओं पर उनके समर्थकों का अघोषित दबाव भी दिखा रहा है।

फोटोः फाइल 

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