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आज बात करेंगे छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल की कहानी जिन्होने ना सिर्फ कांग्रेस को राज्य में फर्श से अर्श तक पहुंचाया बल्कि देश के मजबूत नेता बनकर उभरे। तो बात है 2013 की। जब कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था। हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की लीडरशिप का एक हिस्सा साफ हो गया। बड़े नाम के तौर पर बचे थे केवल अजीत जोगी। लेकिन इस हमले के बाद जोगी अपनी साख गवां बैठे थे। ऐसे में कमान आ गई तीखे तेवर रखने वाले शख्स के पास नाम था भूपेश।

तीखे तेवर, जनता में पकड़ और संगठन को साधने वाला किसान परिवार से आने वाले बघेल 25 साल की उम्र में अपने दम पर राजनीति में आए। साल 1985 दुर्ग के रहने वाले थे भूपेश बघेल तो वहीं से ही सियासत की शुरूआत भी की। दुर्ग उस जमाने में कांग्रेस के दिग्गज नेता चंदूलाल चंद्राकर का गढ़ हुआ करता था।

बघेल ने राजनीतिक गुरू से सीखी 3 बातें

ऐसे में बघेल ने सियासत का ककहरा चंद्राकर से ही सीखा है। बता दे कि भूपेश बघेल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके राजनीतिक गुरू चंद्राकर ने उन्हें तीन सबक सिखाए थे जो हमेशा उनके काम आएंगे। पहला सबक कभी मीडिया के जरिए सियासत चमकाने की कोशिश नहीं करना।

दूसरा सबक खर्च चलाने के लिए बाप दादा के धंधे पर ही निर्भर रहना और सियासत पेट भराई का जरिया मत बनाना। तीसरा सबक- आलाकमान के आदेश के खिलाफ कभी भी बगावत नहीं करना है। हार और जीत की भूपेश बघेल के बारे में जाना जाता है कि उनके भतीजे के हाथों ही उन्हें पहली हार मिली थी। एक ही वो साल आया जब भूपेश बघेल ने पहला चुनाव जीता। साल 1993 सीट थी। दुर्ग जिले की पाटन सीट से लगातार जीतते रहे थे साल 2008 की और इस साल वो अपने भतीजे और बीजेपी उम्मीदवार विजय बघेल से हार गए थे। 
राजनीतिक सफर की बात करें तो भूपेश बघेल मध्यप्रदेश के दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 1990 से 1994 तक जिला युवा कांग्रेस कमेटी दुर्ग के भी अध्यक्ष रहे। कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गए। मध्यप्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री रहे।

कांग्रेस की सरकार बनी तब जोगी सरकार में भी वो कैबिनेट मंत्री रहे। साल 2013 में पाटन से जीत दर्ज की और फिर 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। अब बात करेंगे उस संजीवनी की जो भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को दी और वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को संजीवनी बूटी देकर दुबारा से जीवित किया। 2014 में कांग्रेस की कमान बघेल के हाथ में आई। वो बुरी तरह से जंग खाई हुई थी। 15 साल सत्ता में बाहर रहे बिखर चुके थे। जिन्हे समेटने के लिए भूपेश बघेल ने सबसे पहले जमीन का रास्ता लिया। कस्बे और गांव के दौरे शुरू किए। पुराने कार्यकर्ताओं को मनाया। वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस के लिए ये दवा साबित हुई और सबसे असरदार दवा साबित हुई। 2016 से कांग्रेस का काम दिखाई देने लगा। कांग्रेस के विरोध के चलते बीजेपी सरकार को अपने कदम कई जगहों पर पीछे खींचने पड़े। 

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