लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी के रुख को देखकर अचंभा होता है। बीएसपी सुप्रीमो कोरोना संकटकाल में सत्तारूढ़ बीजेपी की जगह कांग्रेस पर हमलावर हैं। चाहे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा यूपी में एक हजार बसें भेजने का मामला हो या कोटा से प्रदेश के छात्रों को वापस भेजने का मामला हो, मायावती लगतार कांग्रेस पर हमले करती आ रही हैं। देश में करोड़ों मजदूरों के पलायन के मामले में भी मायावती केन्द्र की मोदी सरकार के बजाय कांग्रेस को ही कसूरवार ठहरा रही हैं।
मायावती की कांग्रेस से नाराजगी के पीछे बीएसपी का दलित वोटबैंक है। दरअसल यूपी में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका बीएसपी के उदय के साथ लगा। कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक दलितों ने कांग्रेस का साथ छोड़कर बीएसपी के साथ हो लिया। उसके बाद से कांग्रेस उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी खड़ी ही नहीं हो पाई। साल 2007 में बीएसपी ने ब्राह्मणों को भी अपने साथ कर लिया था और उत्तर प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
इस तरह मायावती के मजबूत होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कमजोर होती चली गई। फिलहाल प्रियंका गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक बार फिर जोरआजमाइस करती नजर आ रही है। कांग्रेस की नजर दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोट बैंक पर है। मायावती कभी नहीं चाहेंगी कि दलित वोटबैंक दुबारा कांग्रेस में जाए, क्योंकि वही मायावती की राजनीति का आधार है।
इसके अलावा राजस्थान में कांग्रेस ने जिस बीएसपी के समर्थन से सरकार बनाई, कुछ दिनों बाद उसी उसी के सारे विधायकों का अशोक गहलोत ने अपनी पार्टी में विलय करा लिया। इसलिए मायावती और कांग्रेस में इतनी तल्खी हो गई है। हलांकि राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीएसपी विधायकों का सत्तारूढ़ दल के साथ विलय इतिहास ही रहा है।
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