चैत्र नवरात्रि 2021 : प्रतिपदा पर भक्तों ने की मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना, जानें पौराणिक कथा

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डेस्क। आज के चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गया है। भारत समेत दुनिया में रहने वाले सनातनी परंपरा के भक्त मां नव दुर्गा के प्रथम स्वरुप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना कर रहे हैं। अधिकांश लोग आज व्रत पर हैं। इस पवन पर्व पर लोग अपने घरों में कलश स्थापित किये हैं। मंदिरों में विशेष पूजा की जा रही है। भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ही नववर्ष भी होता है। इसलिए लोग एक-दूसरे को नववर्ष की बधाइयां भी दे रहे हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय और मैना देवी की पुत्री हैं। शैलपुत्री की आराधना करने से व्यक्ति को चंद्र दोष से मुक्ति मिल जाती है। मां शैलपुत्री की को पीला रंग अति प्रिय है, इसलिए साफ़ व पीले रंग के वस्त्र धारण मां की पूजा करनी चाहिए। भक्त को कलश के पास अंखड ज्योति जला कर ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:’ मंत्र का जाप करने के बाद सफेद फूल की माला अर्पित करना चाहिए। मां शैलपुत्री को सफेद रंग का भोग जैसे खीर या मिठाई लगाने के बाद माता की कथा सुनकर आरती करने और फिर शाम को मां के समक्ष कपूर जलाकर हवन करने का विधान है।

मां शैलपुत्री की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। दक्ष ने इस यज्ञ में सारे देवताओं को निमंत्रित किया, लेकिन अपनी बेटी सती और पति भगवान शंकर को नहीं आमंत्रित किया। सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने के लिए बेचैन हो उठीं, लेकिन भगवान शिव ने सती से कहा कि अगर प्रजापति ने हमें यज्ञ में नहीं आमंत्रित किया है तो ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। परन्तु सती ने पिता के यज्ञ में जाने का हठ करने लगी। सती का हठ देखकर शिवजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की स्वीकृति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो उनकी बहनों ने उनपर कटाक्ष करने लगी। इसके साथ ही उन्होंने भगवान शंकर का भी तिरस्कार किया। प्रजापति दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे।

मायके में चौतरफा अपमान से दुखी होकर सती ने हवन में कूदकर अपने प्राण दे दिए। इसपर भगवान शिव ने यज्ञ भूमि में प्रकट होकर सबकुछ सर्वनाश कर दिया। सती का अगला जन्म देवराज हिमालय के यहां हुआ। हिमालय के घर जन्म होने की वजह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। ुसु समु से वर्ष के दोनों नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाने लगी।

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