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नई दिल्ली॥ हिंदुस्तान और CHINA के संबंध हमेशा से ही तनावपूर्ण रहे हैं। इसकी कई वजह हैं। हिंदुस्तान की तरफ से यदि इस पर बात की जाए तो CHINA की पाकिस्‍तान से घनिष्‍ठता भी इसकी एक बड़ी वजह है। लेकिन इन सभी के बावजूद तनाव को कम करने कोशिशें बार-बार हिंदुस्तान की तरफ से होती रहती हैं। मगर, CHINA है कि मानता ही नहीं।

CHINA

कभी अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा बताता है तो कभी वहां के छह जगहों के नाम अपने हिसाब से बदल देता है। कभी जम्‍मू कश्‍मीर पर अवैध तरीके से कब्‍जा जमाने वाले पाकिस्‍तान के साथ मिलकर आर्थिक कॉरिडोर बनाने लगता है वह भी उस जमीन पर जो कानूनन न तो उसकी है और न ही पाकिस्‍तान की। CHINA और हिंदुस्तान के बीच बॉर्डर विवाद बहुत पुराना है। यहां ये भी ध्‍यान रखना जरूरी है कि वर्ष 1962 में CHINA से हुए युद्ध में हिंदुस्तान को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

दोनों देशों में विवाद की एक बड़ा कारण अक्‍साई चिन भी जिसपर कभी-कभार बात होती भी है। क्षेत्रफल के हिसाब से यदि अक्‍साई चिन को आंका जाए तो यह दरअसल स्विटजरलैंड की बराबर है। इतने बड़े क्षेत्र पर CHINA ने अवैध रूप से कब्‍जा जमाया हुआ है, जबकि इस पर हिंदुस्तान का कब्‍जा है और यह जम्‍मू कश्‍मीर का ही एक हिस्‍सा है। अक्साई चिन क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है।

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1834 में पंजाब में सिखों का राज था। 1834 में वो लद्दाख तक जा पहुंचे और लद्दाख को कश्मीर से मिलाने की घोषणा कर दी थी। सिखों की फौज ने बाकायदा तिब्बत पर हमला कर दिया, मगर, CHINA की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और खदेड़ते हुए लद्दाख और लेह पर कब्जा कर लिया। सिख और चाइनिजों के बीच 1842 में एक समझौता हुआ जिसमें तय हुआ कि एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।

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