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Up Kiran, Digital Desk: सोचिए ज़रा, क्या आप बिना किसी सुरक्षा उपकरण के खुले सीवेज में उतर सकते हैं? नहीं ना? लेकिन भागलपुर में इन दिनों सफाईकर्मी यही कर रहे हैं—जान जोखिम में डालकर शहर को साफ रखने का काम। और सबसे चिंता की बात यह है कि यह सब नगर निगम की जानकारी में हो रहा है, फिर भी कोई सुध नहीं ले रहा।
इन दिनों भागलपुर नगर निगम बड़े नालों की उड़ाही (गहरी सफाई) करवा रहा है। सफाई एजेंसियां दिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि जो लोग इन गंदगी से भरे, खतरनाक नालों में उतर रहे हैं, उन्हें न तो हेलमेट मिल रहा है, न दस्ताने, और न ही सुरक्षा बूट। यानी पूरी तरह असुरक्षित माहौल में ये कर्मी हर दिन काम कर रहे हैं।
सवाल ये है – क्या नगर निगम किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहा है?
नगर निगम के अधिकारियों से लेकर सफाई कार्य एजेंसियों तक, हर कोई जिम्मेदारी से आंखें मूंदे हुए है। ऐसा लगता है जैसे सफाईकर्मियों की जान की कोई कीमत ही नहीं है। नालों के ढक्कन भारी होते हैं, और ज़रा सी चूक या लापरवाही एक जान ले सकती है। इस पर सफाईकर्मियों के संगठन के अध्यक्ष ने भी गहरी चिंता जताई है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर समय रहते सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो कोई भी दुर्घटना गंभीर रूप ले सकती है।
साफ़-सफाई ज़रूरी है, लेकिन ज़िंदगियां उससे भी ज़्यादा अहम हैं।
हर त्योहार, हर अभियान और हर सरकारी फोटो सेशन में इन सफाईकर्मियों को सामने रखा जाता है – ‘स्वच्छता के असली नायक’ कहकर। लेकिन हकीकत ये है कि जब बात उनकी सुरक्षा की आती है तो सब चुप्पी साध लेते हैं। क्या यही है हमारी ‘स्वच्छ भारत’ की असली तस्वीर?
क्या कहता है कानून?
बता दें कि मैनुअल स्कैवेंजिंग और बिना सुरक्षा उपकरणों के नालों में उतारना कानूनी तौर पर प्रतिबंधित है। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कड़ी टिप्पणी कर चुका है। लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि नियम किताबों में हैं, ज़मीनी कार्यों में नहीं।
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