नई दिल्ली। कांग्रेस (Congress) पार्टी में ढाई दशकों के बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है लेकिन इस बार, इस मुकाबले से गांधी परिवार ने खुद को पूरी तरह से बाहर कर लिया है। ऐसे ने अब ये साफ हो गया है कि अशोक गहलोत, शशि थरूर या फिर किसी भी नेता के अध्यक्ष बनने पर गांधी फैमिली बैकसीट पर रह कर पार्टी का संचालन करेगी। बता दें कि साल 1998 के बाद से लगातार सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष रही हैं। हालांकि बीच में राहुल गांधी को भी कमान मिली थी लेकिन साल 2019 के आम चुनाव के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया था।
इसके बाद फिर से सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बन गई थीं। इसके चलते भाजपा लगातार कांग्रेस (Congress) पर हमलावर रही है और परिवारवाद का आरोप लगाती रही है। बीजेपी ने तो ये तक कह दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद एक ही परिवार के लिए रिजर्व है लेकिन अब दशकों बाद कांग्रेस (Congress) पूरी तरह से बदलाव के मूड में है। कांग्रेस के इस कदम से ऐसा लग रहा है कि वह आरएसएस से सीख ले रही है जो भाजपा का मेंटॉर है। आपको बता दें कि भाजपा भले ही आरएसएस का आनुषांगिक संगठन कही जाती है, लेकिन संघ ने कभी भी उसका नेतृत्व नहीं किया है।
आरएसएस का नेतृत्व हमेशा से संघ में अपने नेताओं को संगठन मंत्री के तौर पर भेजता रहा है और पीछे से पार्टी को भी मैनेज करने की कोशिश करता रहा है। आडवाणी का जिन्ना प्रकरण के बाद इस्तीफा हो या फिर नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाने का फैसला, बीते दो दशकों में भारतीय जनता पार्टी में हुए ये अहम फैसले संघ के ही इशारे पर किये गए लेकिन संघ ने कभी सामने आकर पार्टी की सियासत नहीं की। माना जा रहा है कि गांधी परिवार भी अब ऐसी ही रणनीति अपनाने की कोशिश कर रहा है। (Congress)
इस रणनीति के तरह वह पार्टी को मैनेज भी कर सकेगा और किसी अन्य नेता के फेस बनने से उसे सीधे तौर पर विपक्षियों द्वारा टारगेट भी नहीं किया जा सकेगा। बता दें कि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी ही बीते कुछ वक्त से कांग्रेस (Congress) का चेहरा रहे हैं और उसके चलते परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में अब पार्टी इस टैग से मुक्त होना चाहती है।
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