लखनऊ। यूपी वन निगम के तत्कालीन प्रभागीय विक्रय प्रबंधक, गोरखपुर दविंदर सिंह का एक नया भ्रष्टाचारी कारनामा फिर सामने आया है। वह लाखों रूपये की कीमत के पेड़ों की नीलामी का अनुमोदन अपने स्तर पर कर सकें इसलिए उन्होंने पेड़ों की एक बड़ी लाट को छह हिस्सों में बांट दिया। उस लाट की वैल्यूशन करीबन 23 लाख आंकी गयी थी। पर तब नियमानुसार नीलामी का अनुमोदन प्रबंध निदेशक स्तर से लेना होता। यह देख दविंदर सिंह ने पहले ठेकेदार से बात की और उससे 1.50 लाख नकद धनराशि जमा करा ली। मामले का खुलासा तब हुआ। जब ठेकेदार को लाटें नहीं मिली और न ही पैसा वापस हुआ।
दरअसल नियम है कि निगम में छह लाख रूपये की धनराशि से अधिक के पेड़ों के लाटों की नीलामी के लिए प्रबंधक निदेशक स्तर से अनुमोदन लेना होता है। पर निगम के तत्कालीन प्रभागीय विक्रय प्रबंधक, गोरखपुर दविंदर सिंह ने इसके उलट काम किया। उन्होंने दस्तावेजों में उन्हीं पेड़ों के लाटों को छह हिस्सों में बांट दिया। इसके बाद भी ठेकेदार को लाटें नहीं मिली तो उसने धनराशि वापस मांगी। दविंदर सिंह ने पैसे तो नहीं दिए पर ठेकेदार को उसके खिलाफ मुकदमा कराने और उसकी फर्म को ब्लैक लिस्ट कराने की धमकी दे डाली।
फिर पीलीभीत के ठेकेदार लईक ने परेशान होकर यूपी वन निगम के महाप्रबंधक (विपणन) को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण से अवगत कराया। लईक का कहना है कि प्रभागीय विक्रय प्रबंधक, गोरखपुर दविंदर सिंह से राप्ती मुख्य नहर शोहरतगढ की लाट के बारे में बात हुई। तब दविंदर सिंह ने कहा कि इस लाट की कीमत ज्यादा है। इस वजह से इसका अनुमोदन एमडी स्तर से होगा। आप 1.50 लाख नकद जमा करा दीजिए। इस लाट को छह हिस्सों में बांटकर आपकी फर्म पर करा दूंगा, क्योंकि छह लाख से कम की वैल्यूशन पर अनुमोदन का अधिकार डीएसएम यानि प्रभागीय विक्रय प्रबंधक के पास होता है। लईक ने 1.50 लाख रूपये जमा करा दिए। पर उसका अनुमोदन 40 दिन बाद मिला। लईक ने जमा धनराशि की वापसी के लिए पत्र लिखा। पर उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। उल्टे दविंदर सिंह ने उन लाटों को दोबारा ई नीलाम करा दिया।
विभागीय जानकारों का कहना है कि यदि 40 दिन में ठेकेदार लाट न लें तो यह ठेकेदार के उपर है वह काम करता है या नहीं। नियम है कि उसे सिक्योरिटी का पैसा वापस कर दिया जाता है। पर दविंदर सिंह ने उससे सिक्योरिटी के तौर पर प्राप्त धनराशि वापस नहीं की।
ठेकेदार लईक का यह भी कहना है कि राप्ती मुख्य नहर शोहरतगढ की पत्रावली तलब कराकर देखा जाए तो उनके आरोप सही साबित होंगे। उनके द्वारा जमा की गयी धनराशि का कुछ हिस्सा काफी दिनों बाद वापस किया गया है। उनकी मांग है कि इस बाबत हुए नुकसान की भरपाई भी दविंदर सिंह से करायी जाए।