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Up Kiran, Digital Desk: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में लगातार तीसरे दिन सरकार के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। लेकिन इस बार सिर्फ सरकार पर ही नहीं, बल्कि सेना की भी जमकर निंदा हो रही है। आम जनता की नाराजगी इस हद तक बढ़ गई है कि फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की अगुवाई वाली पाक सेना को ‘सिस्टम की सबसे बड़ी समस्या’ करार दिया जा रहा है। लोगों का कहना है कि यहां भ्रष्टाचार और राजनीतिक अधिकारों की कमी ने उन्हें बेचैन कर रखा है।

गोलीबारी ने बढ़ाई तनाव की आग

स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक, सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की, जिसमें कम से कम 12 नागरिक मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हुए। इस गोलीबारी में तीन पुलिसकर्मी भी शहीद हुए हैं जबकि नौ अन्य घायल हुए। यह घटना इलाके में तनाव को चरम सीमा पर ले आई है।

जब नेता बने आवाज़- आम जनता का संघर्ष ही असली कहानी

आवामी ऐक्शन कमेटी के मुखिया शौकत नवाज मीर ने इस आंदोलन को केवल किसी एक व्यक्ति या समूह का नहीं बताया। उन्होंने इसे पूरे सिस्टम के खिलाफ जनता की लड़ाई कहा। मीर ने सेना और सरकार की तुलना एक ऐसी ताकत से की जो ‘लोगों को दबाने में लगी है।’ उनका मानना है कि पीओके की जनता अब डरने वाली नहीं और ये लड़ाई अंतिम सांस तक जारी रहेगी।

कैसे शुरू हुई थी यह लड़ाई?

दरअसल यह विरोध शुरू हुआ था दो साल पहले जब स्थानीय लोग आटा और बिजली की निरंतर और किफायती आपूर्ति की मांग लेकर सड़कों पर उतरे थे। लेकिन अब यह सिर्फ बिजली-आटे की बात नहीं रही। कश्मीरी अभिजात वर्ग के विशेषाधिकारों को खत्म करने, विधानसभा की आरक्षित सीटों को हटाने और मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग भी जुड़ गई है।

38 सूत्री मांगपत्र: जनता की उम्मीदें और निराशाएं

जेकेजेएएसी ने सरकार पर आरोप लगाया है कि दो साल पहले हुए समझौते को लागू करने में वह नाकाम रही है। प्रदर्शनकारियों ने 38 मांगों का एक पैकेज प्रस्तुत किया है जिसमें शरणार्थियों के लिए आरक्षित सीटों को खत्म करने और अभिजात वर्ग के विशेषाधिकार वापस लेने की मुख्य मांगें शामिल हैं। इसके अलावा सड़क परियोजनाओं का निर्माण, कर में राहत, आटा और बिजली पर सब्सिडी, नौकरी कोटा खत्म करना और न्याय व्यवस्था में सुधार भी मांगों में शामिल हैं।