नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत ने जासूस महमूद अंसारी को बड़ी राहत दी है। दरअसल, अंसारी बीते तीन दशकों से अपने अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। 75 वर्षीय महमूद का दावा है कि वे जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में पकड़े गए थे और उन्हें वहां 14 साल की जेल की सजा हुई थी। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को उन्हें 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। 75 साल के महमूद वर्तमान समय में राजस्थान के कोटा में रह रहे हैं। (Pakistan)
ये आदेश चीफ जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट की बेंच ने दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह उनके दावों पर विचार नहीं व्यक्त कर रही है बल्कि पूरे दृष्टिकोण को देखते हुए यह आदेश दिया है। बता दें कि महमूद की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि उन्होंने पाकिस्तान (Pakistan) की जेल से पत्र लिखकर अपने विभाग के साथ-साथ भारत के गृहमंत्री को जानकारी दी थी और उन्होंने अपनी छु्ट्टी के लिए भी आवेदन किया था।
ये है अंसारी का दावा
महमूद अंसारी का दावा है कि वे डाक विभाग में नौकरी करते थे। उन्होंने अपनी नौकरी साल 1966 में ज्वाइन की थी लेकिन 12 दिसंबर 1976 को पाकिस्तानी रेंजरों ने उन्हें जासूसी के आरोप में पकड़ लिया और गिरफ्तार कर लिया था।इसके बाद उनपर पाकिस्तान (Pakistan) में मुकदमा चलाया गया और साल 1978 में पाकिस्तान में उन्हें 14 साल जेल की सजा सुनाई गई। ऐसे में वे अपनी नौकरी पर नहीं जा सके और भारत में उनकी नौकरी चली गई। साल 1980 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
1989 में सजा पूरी कर लौटे देश
मंसूरी का दावा है कि अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्होंने पाकिस्तान (Pakistan) की जेल से काफी कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने कई लेटर भी लिखे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बावजूद इसके महमूद ने हार नहीं मानी और अपने हक के लिए लड़ते रहे। साल 1989 में सजा पूरी होने के बाद वे रिहा हुए और अपने देश वापस लौटे तब उन्हें बर्खास्त किए जाने की सूचना मिली। इसे लेकर उन्होंने कोर्ट का रुख किया और अपने हक के लिए लड़ाई लड़नी शुरु की।
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