img

आज बात करेंगे छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र और पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की। बिलासपुर जिले के छोटे से कस्बे पेंड्रा के पास जनजातियों के एक गांव जोगी सार के घर में ये पैदा हुए। वंदना नंगे पैर स्कूल जाया करते थे। उनके पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए उन्हें मिशन की मदद मिली थी। लेकिन इस वजह से अजीत जोगी अपनी जाति को लेकर भी विवादों में रहे। कुछ लोगों ने दावा किया कि अजीत जोगी अनुसूचित जनजाति से नहीं है। मामला अनुसूचित जनजाति आयोग से होते हुए हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लेकिन अजीत जोगी कहते रहे कि हाईकोर्ट से दो बार उनके पक्ष में फैसला मिला है। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच करने की बात कही। यह जांच छतीसगढ़ सरकार के पास है।

अजीत जोगी जितने प्रतिभावान रहे उतने ही उनमें नेतृत्व के गुण भी रहे हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर मसूरी में प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान तक सब जगह वापस आने वालों में शामिल रहे और राजनीति करने वालों में भी उनके सपने बहुत बड़े थे। भोपाल से इंजीनियरिंग, आईपीएस, आईएएस बनने के बाद कलेक्टर और फिर राज्य सभा से लेकर उनके मुख्यमंत्री बनने तक का सफर काफ़ी रोचक है। वे आईपीएस बने, आईएएस बने, राजनीति में गए और सीएम बने।

भोपाल के मौलाना आजाद कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियर में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुके अजीत जोगी ने आईएएस के तौर पर 1981 85 तक इंदौर के जिला कलेक्टर के तौर पर अपनी सेवाएं दी हैं। फिर आईपीएस बने। 1974 से 1986 तक मध्यप्रदेश के सीधी, शहडोल, रायपुर और इन्दौर में 12 वर्षों से जोगी ने सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट का रिकॉर्ड बनाया।

राजनिति में ऐसे हुई एंट्री

जोगी पावर तो चाहते थे और ये मौका उनके हाथ लगा जब वे इंदौर में कलेक्टर थे उस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से उनके जो रिश्ते बने वही उन्हें राजनीति में लाने में मददगार बने। 1986 में कांग्रेस को मध्यप्रदेश से एक ऐसे शख्स की जरूरत थी जो आदिवासी दलित समुदाय से आता हो और जिसे राज्यसभा सांसद बनाया जा सके। उस वक्त मध्यप्रदेश के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह अजीत जोगी को राजीव गांधी के पास लेकर गए तो उन्होंने फौरन उन्हें पहचान लिया और यहीं से उनकी सियासी दुनिया में एंट्री हुई।

जोगी का राजनीतिक सिक्का ऐसा चमका कि वह कांग्रेस से 1986 से 1996 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। 1996 में वे रायगढ़ से लोकसभा सांसद भी चुने गए। कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी जब राजनीति में लौट रही थी, तब अजीत जोगी ही उनका भाषण लिखा करते थे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह गांधी परिवार के कितने करीबी रहे हैं।

आखिरी सांस तक बने रहे छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय नेता

तो वहीं जब साल दो हज़ार में मध्यप्रदेश का बंटवारा हुआ तो अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने। शपथ लेने के बाद जोगी ने कहा था, हां, मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं, जो कि दो हज़ार तीन तक राज्य के सीएम रहे। अजीत जोगी शरीर से नहीं दिमाग से राजनीति करते थे। शरीर थका, लाचार हुआ पर उनका दिमाग चलता रहा। वे चुनौती देते रहे, जूझते रहे, अपनी शर्तों पर जीते रहे। आखरी सांस तक वे छत्तीसगढ़ी के लोकप्रिय नेताओं में बने रहे। कोई आम इन्सान भी अगर उनसे मिलने जाता तो वे उन्हें अपने साथ बिठाकर खाना खिलाने से भी पीछे नहीं हटते थे।

ठेठ छत्तीसगढ़ी में धाराप्रवाह और आकर्षक भाषण से लोगों को बांध लेना उन्हें बखूबी आता था। यह दीवानगी आखरी दिनों तक बनी रही। साल दो हज़ार चार के लोक सभा चुनाव के दौरान एक दुर्घटना का शिकार हुए, जिसमें उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। लेकिन राजनीति में उनकी सक्रियता बरकरार रही। उनके विरोधी भी कहते थे कि जोगी व्हीलचेयर के सहारे नहीं विल पावर के सहारे काम करते हैं।

हालांकि हादसे के बाद से जोगी की तबियत खराब होती रही और उनका राजनीतिक ग्राफ भी गिरता गया। लगातार पार्टी में बगावती तेवर अपनाते रहे और अंत में उन्होंने 2016 में कांग्रेस से बगावत कर अपनी अलग पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से गठन किया। एक दौर था जब वो राज्य में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे लेकिन 2018 में उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जंग छेड़ बसपा के साथ गठबंधन कर लिया। लेकिन उन्हें सियासी कामयाबी नहीं मिली और सपनों के सौदागर का सपना सपना ही रह गया। बता दें कि 29 मई 2020 में उनका देहांत हो गया।

--Advertisement--