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अजब-गजब॥ शोधकर्ता वैज्ञानिकों ने बताया कि 6 माह से अधिक वक्त तक शिशु के साथ सोने वाली मांओं में अवसाद का खतरा ज्यादा होता है। विश्व के अधिकांश बाल रोग विशेषज्ञ अभिभावकों से इस आदत को छोड़ने की सलाह देते हैं।

पेन्न स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए शोध में कहा गया है कि अपने छह माह के नवजात के साथ सोने वाली महिलाओं के अवसाद में जाने की आशंका बढ़ जाती है। 60 फीसदी से ज्यादा अभिभावक अपने बच्चों के साथ सोते हैं। यह महिलाएं अपने बच्चे की नींद को लेकर ज्यादा चिंतित रहती हैं। इन महिलाओं के परिवार के अन्य लोगों से संबंध भी नाजुक स्थिति में पहुंच जाते हैं।

इसका इनके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है। ऐसी महिलाओं के अवसादग्रस्त होने का खतरा अपने बच्चों को दूसरे कमरे में सुलाने वाली मांओं के मुकाबले 76 प्रतिशत ज्यादा रहता है। प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर डग्लस तेती का कहना है कि बच्चे के जन्म के बाद 80 फीसदी महिलाएं तनावग्रस्त हो जाती हैं।

15 फीसदी महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है, जो एक हफ्ते से एक माह के बीच कभी भी शुरू होता है और कुछ महीनों तक रह सकता है। ऐसी महिलाओं में नकारात्मकता का भाव बढ़ जाता है, वे जरूरत से ज्यादा रोती हैं और किसी-किसी में हिंसक विचार भी आने लगते हैं। इसलिए विशेषज्ञ प्रसव के बाद महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की सलाह देते हैं।

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वैज्ञानिकों का कहना था कि बच्चे के साथ सोने के कारण अभिभावकों की नींद भी पूरी नहीं हो पाती है। इस कारण महिलाएं खासतौर से अधिक तनाव में रहती हैं। जीवन में बच्चे के आने से सबसे ज्यादा उनकी जिम्मेदारियां बढ़ती हैं और थकान भी उन्हें अधिक होती है। इसके अलावा बच्चे के जन्म के बाद उनके शरीर के हॉर्मोन स्तर में भी बदलाव होता है। इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।

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