Up Kiran, Digital Desk: दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड। सुबह साढ़े पांच बजे का वक्त। अभी अंधेरा पूरा छंटा भी नहीं था। स्वरूपनगर रेल कॉलोनी के बाहर बने छोटे से शौचालय के पास कोई बच्चा जोर जोर से रो रहा था। पहले तो लोगों ने सोचा किसी घर का बच्चा होगा। लेकिन जब राधा भौमिक वहां पहुंची तो उनके होश उड़ गए।
जमीन पर एक नवजात बच्ची पड़ी थी। ना कपड़ा ना कुछ। ऊपर से ठिठुरन भरी ठंड। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि सात आठ आवारा कुत्ते उसके चारों तरफ घेरा बनाकर खड़े थे। ना भौंक रहे थे ना आगे बढ़ रहे थे। बस चुपचाप पहरा दे रहे थे। जैसे कह रहे हों कि इस बच्ची को कुछ नहीं होने देंगे।
राधा जैसे ही नजदीक गई कुत्तों ने धीरे से रास्ता छोड़ दिया। राधा ने बच्ची को गोद में उठाया और रोते हुए बोलीं, “जिन कुत्तों को हम रोज पत्थर मारकर भगाते हैं आज वही भगवान बन गए। पूरी रात बच्ची की रखवाली की। अगर ये न होते तो सुबह तक तो बच्ची मर ही जाती।”
खबर फैली तो पूरी कॉलोनी में लोग दौड़ पड़े। राधा की भतीजी बहू प्रीति बच्ची को गोद में लेकर पहले माहेशगंज अस्पताल पहुंची। वहां से डॉक्टरों ने कृष्णानगर सदर अस्पताल भेज दिया। अच्छी बात ये रही कि बच्ची पर एक खरोंच तक नहीं थी। सिर पर लगा खून सिर्फ जन्म का था। डॉक्टरों ने कहा बच्ची बिल्कुल ठीक है। अभी कुछ घंटे पहले ही पैदा हुई है।
पुलिस और चाइल्डलाइन की टीम तुरंत पहुंच गई। बच्ची को चाइल्ड वेलफेयर कमिटी के हवाले कर दिया गया। अब उसका आगे का जीवन सुरक्षित हाथों में होगा। लेकिन कॉलोनी के लोग आज भी उस रात की बात करते नहीं थकते। कोई कहता है कुत्तों ने इंसानियत की मिसाल पेश कर दी। कोई कहता है भगवान कुत्तों के रूप में आए थे।
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