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Up kiran,Digital Desk : दोस्तों, संसद का शीतकालीन सत्र (Winter Session 2025) बस शुरू ही होने वाला है, लेकिन उससे पहले ही शिक्षा जगत में हड़कंप मच गया है। वजह है सरकार का एक नया और बड़ा फैसला— 'भारतीय उच्च शिक्षा आयोग' (HECI) का गठन।

सरल भाषा में कहें तो, अब तक हमारे देश में कॉलेज, यूनिवर्सिटी और तकनीकी शिक्षा को चलाने का काम UGC (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग), AICTE और NCTE जैसी संस्थाएं करती थीं। लेकिन सरकार अब एक विधेयक लाकर इन पुरानी संस्थाओं को खत्म करने और इनकी जगह एक सिंगल 'सुपर पावर' बॉडी बनाने की तैयारी में है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर शिक्षक और शिक्षाविद इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?

क्या है सरकार का तर्क? (सरकार क्या चाहती है)

सरकार का कहना है कि अलग-अलग संस्थाओं (जैसे यूजीसी, एआइसीटीई) की वजह से काम में देरी होती है और कन्फ्यूजन बना रहता है। नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत सरकार चाहती है कि एक ही छत के नीचे सारी उच्च शिक्षा (मेडिकल और कानून को छोड़कर) का काम हो। इससे फैसले जल्दी लिए जा सकेंगे, काम में पारदर्शिता आएगी और पढ़ाई का स्तर सुधरेगा।

क्यों सड़क पर उतरने को तैयार हैं शिक्षक?

जहां सरकार इसे सुधार बता रही है, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) और जेएनयू (JNU) के शिक्षक इसे 'शिक्षा के निजीकरण' का काला रास्ता बता रहे हैं। उनका मानना है कि यह सब कुछ धीरे-धीरे सरकारी यूनिवर्सिटियों को कॉरपोरेट के हाथों में सौंपने की तैयारी है।

जेएनयू के प्रोफेसर सुरजीत मजूमदार का कहना है कि सरकार इस आयोग के जरिए अपना पल्ला झाड़ना चाहती है। वो कहते हैं, "सरकार एक ऐसा सिस्टम बना रही है जहां कंट्रोल तो उसका हो, लेकिन उसे पैसा न खर्च करना पड़े। यानी अधिकार सरकार का, लेकिन खर्चा यूनिवर्सिटी खुद उठाए।" शिक्षकों को डर है कि इस आयोग के आने से उनके सेवा नियम (Service Rules) बदल जाएंगे और उन पर बेवजह का दबाव बढ़ेगा।

क्या डिग्री महंगी हो जाएगी?

यह सवाल हर छात्र और अभिभावक के मन में है। डीयू एग्जीक्यूटिव काउंसिल के पूर्व सदस्य राजेश झा ने जो आशंका जताई है, वो डराने वाली है। उनका कहना है कि यह आयोग विश्वविद्यालयों को 'अनुदान' (Grant) देना बंद कर सकता है।

जब सरकार से पैसा नहीं मिलेगा, तो यूनिवर्सिटीज अपना खर्च निकालने के लिए छात्रों की फीस बढ़ाएंगी या फिर लोन लेने पर निर्भर हो जाएंगी। इसका सीधा असर गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों पर पड़ेगा। शिक्षा, जो सबका हक है, वह धीरे-धीरे सिर्फ अमीरों के बस की बात रह जाएगी।

दिग्विजय सिंह की कमेटी ने भी चेताया था

यह पहली बार नहीं है जब इस पर सवाल उठे हैं। कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने पहले ही चेतावनी दी थी कि यूजीसी जैसे पुराने और स्थापित संस्थानों को खत्म करना खतरनाक हो सकता है। इससे शिक्षा व्यवस्था का संतुलन बिगड़ेगा और प्राइवेट प्लेयर्स का दबदबा बढ़ेगा।

अब देखना यह होगा कि जब यह बिल शीतकालीन सत्र में संसद के पटल पर रखा जाएगा, तो विपक्ष और सरकार के बीच किस तरह की बहस होती है। क्या वाकई यूजीसी इतिहास बन जाएगा?