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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला दिलचस्प होता जा रहा है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड केस की सुनवाई हुई। इस दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों से लिए साल 2019 से पहले के चंदे की जानकारी उसने सुप्रीम कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में दी थी, लेकिन उसने इसकी प्रति नहीं रखी थी। इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डाटा को स्कैन और डिजिटलीकरण करने के बाद मूल डाटा को चुनाव आयोग को वापस कर दिया जाएगा। इस दौरान सीजेआई ने सवाल उठाया कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने चुनाव आयोग को दिए आकंड़ों में बॉन्ड नंबर का उल्लेख क्यों नहीं  किया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर पूरा डाटा साझा नहीं करने के लिए एसबीआई को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने इसके अलावा एसबीआई को बॉन्ड की विशिष्ट संख्या का खुलासा करने के सवाल पर नोटिस जारी करते हुए उसके पास संग्रहीत इलेक्टोरल बॉन्ड डाटा को चुनाव आयोग के पास वापस करने की अनुमति दी। चुनावी बॉन्ड पर छपे अल्फा न्यूमेरिक नंबर से दानदाताओं को राजनीतिक दलों के साथ मिलाने में मदद मिलती। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 18 मार्च तक जवाब देने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एडीआर के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अदालत ने एसबीआई द्वारा चुनाव आयोग को मुहैया कराई गई जानकारी का मुद्दा उठाया है। एसबीआई द्वारा दी गई जानकारी में अल्फा न्यूमेरिक नंबर की जानकारी नहीं दी गई है, जिससे पता चलता कि किस व्यक्ति ने बॉन्ड खरीदा और वह बॉन्ड किसी राजनीतिक पार्टी ने कैश कराया।

गौरतलब है कि गत 15 फरवरी को पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के एकमात्र फाइनेंशियल संस्थान एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से अब तक हुई इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद की पूरी जानकारी छह मार्च तक देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एसबीआई की याचिका पर सुनवाई की थी, जिसमें एसबीआई  ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी साझा करने की समय सीमा 30 जून तक बढ़ाने की मांग की थी।
 

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