Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में भारतीय रुपये में लगातार गिरावट देखी जा रही है। शुक्रवार को रुपये ने नया रिकॉर्ड बनाते हुए 90.50 के स्तर को पार कर लिया, जो पिछले कई वर्षों में सबसे निचला स्तर है। इस स्थिति में एक और दिलचस्प मोड़ आया है – अफगानिस्तान की मुद्रा, अफगानी अफ्गानी, जो अब भारतीय रुपये से भी मजबूत हो गई है। यह स्थिति, जो पहली नजर में असंभव लग सकती है, आज के आर्थिक परिदृश्य का एक अजीब सा सच बन चुकी है।
अफगानी मुद्रा क्यों है मजबूत?
अफगान अफ्गानी की मजबूती के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से एक मुख्य कारण है तालिबान शासन की नीतियां। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान की सरकार ने विदेशी मुद्राओं के इस्तेमाल पर सख्ती से पाबंदी लगा दी। अमेरिकी डॉलर और पाकिस्तानी रुपये जैसे प्रमुख विदेशी मुद्राओं का उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिससे इनकी मांग काफी कम हो गई। इस कदम के बाद, अफगानिस्तान में केवल स्थानीय मुद्रा का लेन-देन हो रहा है, और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर भी सख्त नियंत्रण है।
मुद्रा के संतुलित आपूर्ति और मांग का असर
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में फिलहाल बहुत सीमित व्यापार और निवेश हो रहे हैं। विदेशी मुद्रा के अभाव में, अफगानी करेंसी पर बाहरी दबाव नहीं पड़ रहा। इसी वजह से मुद्रा का आपूर्ति और मांग में संतुलन बना हुआ है, जिससे अफगानी मुद्रा मजबूत और स्थिर बनी हुई है।
यहां यह समझना जरूरी है कि अफगानी अफ्गानी की मजबूती का मतलब यह नहीं है कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत से कहीं बेहतर है। दरअसल, इसका आधार आर्थिक विकास या उच्च जीडीपी नहीं, बल्कि मुद्रा पर बाहरी दबावों का न होना है।
रुपये में गिरावट का भारत पर प्रभाव
भारत में रुपये की गिरावट सीधे तौर पर आम आदमी की जिंदगी पर असर डाल सकती है। आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से महंगाई में इजाफा हो सकता है। इसके अलावा, रुपये की कमजोरी से विदेशी निवेश में भी गिरावट आ सकती है, जिससे भारतीय बाजारों में अस्थिरता हो सकती है।
हालांकि, इस समय भारतीय सरकार और रिजर्व बैंक की ओर से कई उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन रुपये के इस निचले स्तर तक गिरने से भारतीय व्यापारियों और आम जनता को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
तालिबान सरकार की नीति और अंतरराष्ट्रीय बाजार
तालिबान सरकार की नीतियों के कारण अफगानी मुद्रा भले ही स्थिर और मजबूत दिख रही हो, लेकिन यह आर्थिक दृष्टि से ज्यादा सकारात्मक नहीं मानी जा सकती। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश में कमी के कारण, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था समग्र विकास से दूर है।
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