त्योहार की देश विदेश में अलग पहचान है। ऐसा ही एक त्योहार है शीतला मेवाड़ की परंपराओं में जो कि यहां अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। भीलवाड़ा में जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर लिटाकर उसकी शवयात्रा निकाली जाती है। गाजे बाजे और रंग गुलाल उड़ाते हुए जिंदा आदमी को लेटा मुर्दे की सवारी निकाली जाती है।
अर्थी में लेटा जिंदा व्यक्ति अपनी कभी अपना एक हाथ बाहर निकालता है तो कभी हिलता डुलता है। यहां तक कि अपने उड़ते कफन को भी खुद ही ठीक कर लेता है तो कभी उठकर पानी पी लेता है।
परंपरा के अनुसार अर्थी जब अंतिम पड़ाव पर पहुंचती है तो वह उठकर भागने की कोशिश करता है। तब मुर्दे की सवारी में शामिल लोग उसे जबरन बिठा देते हैं। ये अजीब परंपरा वस्त्रनगरी के नाम से भीलवाड़ा में मशहूर है और शीतला सप्तमी को बीते 200 सालों से निभाई जा रही है। मुर्दे की सवारी में भारी तादाद में लोग रंग गुलाल उड़ाते हुए शामिल होते हैं। फिर चाहे चोली के पीछे चुनरी होली का त्योहार और दूसरे दिन धुलंडी देशभर में मनाई जाती।
भीलवाड़ा में होली के सात दिन बाद होली मनाई जाती है और जिसे शीतला मेवाड़ कहा जाता है। दरअसल, भोपाल से चित्तौड़ वालों की हवेली के यहां से एक मुर्दे की सवारी निकलती है, उसको ढोल कहते हैं और उसमें खूब रंग खेला जाता है। खूब हंसी मजाक हमारे होते हैं, चुटकले होते हैं, गालियां होती है और उसमें एक जिंदा आदमी को मुर्दे के रूप में लिटाया जाता है और उसकी सवारी निकालते।
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