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ओम प्रकाश तिवारी

हमारा देश उत्सवों का देश कहा जाता है। यहां हर रोज कोई न कोई उत्सव होता है। कभी – कभी एक ही दिन में एक से अधिक उत्सव होते हैं। और तो और हमारे देश में आपदा और संकट भी तमाम लोगों के लिए उत्सव होते हैं या ऐसे लोग आपदा को अवसर में तब्दील कर लेते हैं। यही तो हमारे प्रधानमंत्री और सरकार भी चाहती है। तमाम लोग और संस्थाएं पहले से ही इस पावन काम में लगी हैं। जो लोग या संस्थाएं आलस या फिर किसी वजह से पुण्य से वंचित रह गई हैं, उनके लिए अभी अवसर है।

मौजूदा दौर कोरोना महामारी का है। पूरी दुनिया कराह रही है। भारत में भी बुरा हाल है। सक्रमण की गति हर दिन तेज हो रही है। मरने वालों की तादाद में ही उसी गति से इजाफा हो रहा है। इसके बावजूद मारे यहां कोरोना का कोई रोना नहीं है। कोई कोरोना से हल जोतवा रहा है तो कोई उसे फटकार रहा है। कई प्रदेशों में तो कोरोना पूज्यनीय भी हो गया है। जब इतना कुछ है तो स्वाभाविक है कि उत्सव का माहौल बन ही जाएगा। बन भी गया है। लोग उत्सव मना भी रहे हैं। कइयों की कमाई के रिकार्ड टूट रहे हैं। कितने लोगों के तो अच्छे दिन ही आ गए है ।

लंतरानी: बे-रहम लॉक-डाउन

हमेशा की तरह कोरोना त्रासदी में भी बड़े सरकार ने राहत की हिमालय जैसी विशाल घोषणा कर राष्ट्र चिंतन में लीन हो गए हैं। बीच बीच में मन की बात कह देते हैं। तमाम बाबू-अफसर और मंत्री प्रजा के पालन में तल्लीन हैं। यूपी वाले योगी बाबा पहले से भी ज्यादा सख्त हो गए हैं। शासन भी सख्त। लोग अनुशासन में उत्सव मना रहे हैं। लाकडाउन में छूट के पहले लोग लाइव उत्सव मना रहे थे। कवि गोष्ठियां, मुशायरे, संवाद और दावतें भी लाइव। जैसे सच में इण्डिया डिजिटल हो गई है।

कोरोना काल : देश की नीतियों का विद्रूप है भुखमरी

भाजपा लाइव रैलियों का उत्सव मना रही है। गृह मंत्री अमित शाह ललकार रहे हैं। है कोई माई का लाल ? मतलब कि हर कोई उत्सव में व्यस्त है। अब कांग्रेस और कुछ बुद्धिजीवियों को उत्सवों से परहेज़ है तो कोई क्या कर सकता है। पूरा देश लाकडाउन में घरो में रहकर मस्ती से एकजुटता का प्रदर्शन करता रहा और राहुल और प्रियंका को प्रवासी मजदूरों कि चिंता खाये जा रही है। अब कोई कुछ कितना भी और कुछ भी कहे हम जन-गण-मन- को उत्सवधर्मिता नहीं छोड़नी चाहिए।

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