लंतरानी: बे-रहम लॉक-डाउन

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ओम प्रकाश तिवारी

भोर हो चुकी है, बाहर सन्नाटा है, पक्षियों के कलरव से सन्नाटा टूटता है और मैं भी जग जाता हूँ। उठने का मन नहीं कर रहा है …। एक बार उठने को हुआ .. फिर मन में आया कि उठ कर ही क्या करूँगा ? कौन सा तीर मार लूँगा ? ऐसे ही एक घंटा बीत गया। सोच रहा हूँ कि उठूं चाय बनाऊं या अभी कुछ और देर तक लेटा रहूं। यही सोचते-सोचते एक घंटा और बीत गया। फिर सोच रहा हूँ कि उठ ही जाऊं, लेकिन मन नहीं कह रहा है उठने का।

इसी उधरबेन में पड़ा था कि मोबाइल बजने लगा। उठाकर देखा तो शर्मा जी थे। हलो – हाय की औपचारिकता से छूटते ही उन्होंने कहा, पता है तुझे, मेरे मुहल्ले के बगल वाला मुहल्ला सील हो गया है। कल शाम को तीन कोरोना पोजटिव मिले हैं। घर से निकलना मत। और हां जो निकल रहा है पुलिस वाले उसकी खूब बजा रहे हैं। अच्छा शाम को फिर बात होगी। मोबाइल हाथ में पकड़े सोच रहा हूँ कि क्या किया जाय। सड़क पर भी नहीं जा सकता। फिर सोचा कि चलों देखते हैं सड़क का माहौल, कोई पूछेगा तो कह देंगे कि दवा लेने जा रहे हैं।

मैं नारी हूँ

यही सोचते हुए पेंट पहन ही रहा था कि फिर मोबाइल बजने लगा। देखा तो गांव से प्रधान जी का फोन था। दुआ-सलाम के बाद वह भी शुरू हो गए। अरे भाई … लखनऊ तो हॉटस्पॉट बन चूका है। हां … मुस्लिम बस्ती है न … कोरोना तो फैलेगा ही। ई … जमात वाले सब गड़बड़ कर दिए हैं। हां तो खाना-पीना कैसे चल रहा है। दिक्क्त तो होगी ही। हां … अभी गांव का माहौल खराब हो गया है … शहरों से लोग बीमारी लेकर आ गये हैं। अब आगे भगवान ही मालिक हैं।

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खैर, प्रधान जी से छूट कर किसी तरह पैंट पहना ही था कि बाहर शोर सुनाई देने लगा। शर्ट कि बटन बंद करते हुए बाहर निकला तो नजारा दिल को दहला देने वाला था। पुलिस वालों ने एक सब्जी वाले और फल वाले का ठेला पलट दिया था। पुलिस वाले गालियां दे रहे थे और ठेले वाले रहम कि भीख मांग रहे थे। खैर, कुछ लोगों के समझाने पर पुलिस वाले चले गए। इसके बाद बाहर निकलने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ी। मैं कमरे पर आकर दुबारा लेट गया और मोबाइल में समाचार देखने लगा।

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मोबाइल पर जो भी चैनल या पोर्टल खोलूं सब में कोरोना के संक्रमण की खबर। सभी पल-पल कि जानकारी दे रहे थे। मोबाइल कि स्क्रीन पर नजर गड़ाए सोचने लगा कि कोरोना की व्यापकता की भी थाह नहीं है। चीन हो या अमेरिका, ब्रिटेन हो या फ्रांस, पृथ्वी पर हर कहीं व्याप्त है। इसी सोच में डूबा था कि पड़ोस वाले बाजपेई जी आ गये। बोले कि सुना नहीं कोरोना साधारण वायरस नहीं है, यह दैवीय शक्ति है। बिहार और बंगाल में लोग इसे पूज रहे हैं। सोशल मीडिया पर खूब चल रहा है। कल हमारे मुहल्ले की औरतें भी गोमती के किनारे कोरोना मैया की पूजा अर्चना करेंगी, ताकि मानवता की रक्षा हो सके।

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… अब तो मैं अवसाद में चला गया। पुरे दिन ‘कोरोना माई’ के बारे में निठल्ला चिंतन करता रहा। फिर अँधेरा होने लगा। दाल-चावल बनाया। क्षुधा तृप्त की और फिर, मानवता के बारे में सोचने लगा। सोचते-सोचते शून्य में चला गया। रात के लगभग डेढ़ बज रहे होंगे, तभी ह्वाट्सप पर मकान मालकिन आ धमकी और बकाये किराए की मांग करने लगी। मैंने कहा कि संकटकाल चल रहा है, सरकार ने किराया नहीं मांगने का निर्देश दिया है। मेरे इतना कहते ही वह भड़क गई … और कहने लगी सरकार ने गरीबों और मजदूरों का किराया माफ़ किया है। आप गरीब थोड़े ही हैं।

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मैं आगे कुछ कहता, इसके पहले ही बुढ़िया ने कड़क आवाज में कहा कि अगर किराया न दे सको तो मकान खाली कर दो। इतना कहकर उन्होंने बात बंद कर दी। अब बुढ़िया कि धमकी के बाद और सोच में पड़ गया कि इस लॉकडाउन में जाऊं कहां ? यह समस्या एक मित्र से कही तो मित्र ने कहां कि क्यों परेशान होते हो, अमेरिका में स्थिति और भी खराब है। अभी दो -चार महीने बुढ़िया आ नहीं सकती, तबतक कुछ पैसे का इंतजाम कर लो ..। मैंने कहां कि वह आज ही कल में पैसे खाते में डालने को कह रही है। मित्र ने कहा कि किसी तरह अर्जेस्ट करो। लॉकडाउन में कहाँ ठिकाना मिलेगा ?

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मैं सोचने लगा कि कितना बे-रहम लॉकडाउन है। न घर में चैन और न बाहर आराम। गांव जा नहीं सकता और शहर में किराए के मकान में रह नहीं सकता। वैसे मकान मालकिन बुढ़िया अभी जल्द तो आएगी नहीं, कुछ दिन और टरकाया जाए। हो सकता है कि अगले हप्ते लॉकडाउन खत्म हो और कहीं कुछ काम-धाम मिल जाय…।

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