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mahakumbh 2025: ये कहानी एमटेक वाले बाबा दिगंबर कृष्ण गिरि की है, जो एक सफल करियर छोड़कर संन्यासी जीवन को अपनाने का निर्णय लेते हैं। उनकी यात्रा एक आम इंसान से साधु बनने की है, इसमें उन्होंने ऐश-ओ-आराम की जिंदगी को त्याग दिया।

दिगंबर का जन्म बेंगलुरु में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने कर्नाटक विश्विद्यालय से एमटेक की डिग्री हासिल की। पेशेवर जीवन में वे जनरल मैनेजर के रूप में काम कर रहे थे और उनकी टीम में 300 से ज्यादा कर्मचारी थे। एक दिन देहरादून की यात्रा के दौरान साधुओं की टोली को देखकर उनके मन में वैराग्य का भाव जागृत हुआ।

संन्यासी बनने की उनकी यात्रा में उन्होंने हरिद्वार जाकर गंगा में अपने सभी भौतिक सामानों का त्याग कर दिया और 10 दिन तक भिक्षाटन किया। उनका मानना था कि भौतिक संपत्ति मन की शांति को बाधित करती है। इसके बाद उन्होंने निरंजन अखाड़े से दीक्षा ली और साधु जीवन को अपनाया।

अब वे उत्तरकाशी के एक छोटे गांव में साधु वेष में जीवन बिता रहे हैं, जहां वे ध्यान और साधना में लीन रहते हैं। उनकी कहानी इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों और प्राथमिकताओं को बदल सकता है। ये साधना और आत्मा की खोज की यात्रा है, जो आज के युग में भी लोगों के लिए प्रेरणादायक है।

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