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Up Kiran, Digital Desk: नवंबर का महीना शुरू होते ही हिमालयी गांव धराली में पारा तेजी से गिर रहा है। आने वाली बर्फबारी ने लोगों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। पहले जहां सर्दियां आते ही लोग मैदानी इलाकों में चले जाते थे, वहीं इस बार ज्यादातर परिवार अपने टूटे घरों के मलबे के पास डटे हैं। वजह साफ है – अपनों के शव अभी भी नहीं मिले और जो सामान बच सकता था, उसे बचाने की आखिरी कोशिश चल रही है।

मलबे में दबी हैं जिंदगियां और यादें

लोग दिन-रात मलबे में गड्ढे खोद रहे हैं। सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आईटीबीपी की टीमें भी हफ्तों खोजबीन कर थक गईं, फिर भी करीब साठ लोग लापता हैं। कोमल नेगी जैसी महिलाएं हर कुछ दिन बाद धराली पहुंचती हैं। वे बताती हैं कि मलबा देखते ही दिल में उम्मीद जागती है कि शायद पति या कोई अपना अभी भी जिंदा हो। तीन महीने बाद भी अंतिम संस्कार का इंतजार खत्म नहीं हुआ।

सिर्फ पांच लाख में कैसे कटेगा जीवन?

सरकार ने हर प्रभावित परिवार को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया है। ग्रामीण इसे मजाक बताते हैं। उनका कहना है कि पूरा गांव मिट्टी में मिल गया, खेत-बागीचे बह गए, दुकानें-मकान सब खत्म। इस रकम से नया घर तो दूर, किराए का कमरा भी मुश्किल से मिलेगा। लोग बार-बार यही सवाल उठा रहे हैं कि उसी खतरनाक जगह पर दोबारा घर बनाने को क्यों कहा जा रहा है?

6 सुरक्षित जगहें सुझाईं, जवाब अब तक शून्य

ग्रामीणों ने खुद आगे बढ़कर वन विभाग और राजस्व की छह सुरक्षित जगहें चुनी हैं – भैरोघाटी, कोपांग, जांगला, डबरानी, ओंगी और अखोद थातर। ये नाम प्रशासन को लिखित में दे दिए गए। लेकिन तीन महीने गुजरने के बाद भी कोई अधिकारी मौके पर आकर जगह देखने नहीं आया। लोगों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्दी कोई ठोस कदम नहीं उठा तो बड़ा आंदोलन करेंगे।