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Report: Om Prakash Tiwari

नरेंद्र मोदी सरकार 31 मई अर्थात रविवार को एक साल का कार्यकाल पूरा कर लेगी। इससे एक दिन पहले शनिवार को पीएम मोदी ने देशवासियों को चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल की उपलब्धियों और चुनौतियों का जिक्र किया है। पीएम मोदी की बातों से इतर अगर सरकार के एक साल के कार्यकाल को देखा जाये तो कई चीजें हैरान करने वाली हैं। सरकार की नीतियां और आचरण लोकतान्त्रिक परंपराओं और आदर्शों के विपरीत हैं। सरकार विपक्ष को बिलकुल तवज्जो नहीं देती है। कहा तो यहां तक जाता है कि सरकार के मंत्री और सांसद तक तमाम फसलों और नीतियों से अनभिज्ञ रहते है।

 

यह सत्य है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई है। राज्यसभा में भी उसका बहुमत है, लेकिन बहुमत का सरकार के कामकाज में बहुमत का घमंड भी देखने को मिल रहा है। सरकार विपक्ष को पूरी तरह से नजरअंदाज करती रही है, जबकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष की अहम भूमिका होती है। सरकार से उम्मीद होती है कि वह विपक्ष से भी सलाह-मशविरा ले। लेकिन मोदी सरकार की कार्यशैली में विपक्ष को कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती है।

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कांग्रेस समेत कई दल मोदी सरकार पर विपक्ष को तवज्जो न देने का आरोप लगाते रहे हैं। हाल ही में लॉकडाउन को लेकर भी ऐसे आरोप लगे हैं। इन आरोपों में सच्चाई है। कोरोना संकट को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हर सलाह का सरकार मजाक उड़ाती रही। प्रवासी मजदूरों के मामले में कांग्रेस की बात न मानने से सरकार की किरकिरी भी हुई। इसके पहले सीएए और एनआरसी के मसले पर भी विपक्ष की सलाह को नजरअंदाज करने से देशभर में हिंसक प्रदर्शन हुए। कई लोगों की जाने भी गई।

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इसी तरह आर्थिक मुद्दों पर कांग्रेस मोदी सरकार को चेताती रही, लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। उलटे कांग्रेस को ही सारी समस्याओं के लिए कसूरवार ठहराती रही। आर्थिक मोर्चे पर सरकार की नाकामी अब उजागर हो चुकी है। इसी तरह रोजगार के मसले पर भी सरकार नौजवानों को सपने ही दिखाती रही। जबकि हकीकत में पुराने रोजगार ख़त्म होते गए और नए का सृजन नहीं हुआ। इस तरह बेरोजगारी रिकार्ड दर से बढ़ती रही।

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इस तरह अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में ही मोदी सरकार जनता के बीच तेज़ी से अलोकप्रिय होती जा रही है। कोरोना संकट के बीच कुप्रबंधन के चलते सरकार की और भी ज्यादा किरकिरी हो रही है। नौकरियाँ गवांकर हजारो किमी का पैदल सफर कर घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की दुश्वारियों के लिए मोदी सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

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