भारत में सीएए को लेकर एक मर्तबा फिर राजनीति तेज हो गई है। लोकसभा इलेक्शन जब करीब है, गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में एक दफा फिर साफ कर दिया है कि इलेक्शन से पहले ही नागरिकता कानून लागू होकर रहेगा। उनका ये कहना मायने रखता है, क्योंकि ये कानून एक ऐसा पैंतरा है जो अगर लागू हो गया तो देश में बहुत कुछ बदल जाएगा।
सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर इलेक्शन से ठीक पहले फिर भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे को क्यों हवा दे रही है, आखिर क्यों अचानक से इस मसलों को इतना बड़ा बनाने का प्रयास कर रही है? होम मिनिस्टर अमित शाह ने एक बार नहीं कई दफा बयान दे दिया है कि नागरिकता संशोधन कानून आने वाला है, बंगाल की धरती से उन्होंने हुंकार भरी है, देश की सदन में उन्होंने संकल्प लिया है और अब इलेक्शन से ठीक पहले फिर अपनी मंशा जाहिर कर दी है।
आसान भाषा में सीएए का अर्थ
नागरिकता संशोधन कानून क्या है। यदि ये कानून बन जाता है तो तीन मुस्लिम देश- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के निवासी हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी लोगों को आराम से हिंदुस्तान की नागरिकता मिल सकती है। प्रक्रिया तो उन्हें भी पूरी करनी होगी, मगर उसी प्रक्रिया को थोड़ा सरल कर दिया जाएगा। मतलब सामान्य आदमी को देश की नागरिकता लेने के लिए 11 साल हिंदुस्तान में रहना होगा, मगर इन मुस्लिम देशों से आए लोगों के लिए ये मीयाद एक से छह साल होने वाली है।
जानें इस कानून के पीछे क्या बीजेपी रणनीति
अब नागरिकता कानून की इस परिभाषा में ही भाजपा का दांव छिपा हुआ है। इस कानून में क्योंकि मुस्लिमों को नागरिकता देने का जिक्र नहीं है, यही सबसे बड़ा विवाद और बीजेपी की एक रणनीति का हिस्सा। भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व की सियासत करती है, ये बात अब जगजाहिर हो चुकी है, मगर उसकी इस सियासत का विस्तार नागरिकता संशोधन कानून है। एक तीर से कई निशाने साधने का साफ प्रयास दिख रहा है।
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