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Up Kiran, Digital Desk: सदियों से मानव सभ्यता ईश्वर, धर्म और आध्यात्म पर विश्वास करती आई है। लेकिन समय के साथ सोच और विश्वास की परिभाषाएँ भी बदली हैं। आज की दुनिया में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ईश्वर की सत्ता को नहीं मानता। ऐसे लोगों को आमतौर पर "नास्तिक" कहा जाता है यानी वे जो किसी भी देवी-देवता, शक्ति या धार्मिक व्यवस्था में आस्था नहीं रखते।
हालांकि, आस्तिक और नास्तिक की यह बहस नई नहीं है, लेकिन वैश्विक स्तर पर नास्तिकों की संख्या में हो रही वृद्धि अब शोधकर्ताओं और समाजशास्त्रियों की दिलचस्पी का विषय बन चुकी है।
दुनिया के वो देश जहां ईश्वर में विश्वास कमज़ोर होता जा रहा है
नास्तिक लोग लगभग हर देश में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ राष्ट्र ऐसे हैं जहां इनकी तादाद बाकियों की तुलना में कहीं ज़्यादा है। चीन इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां दुनिया के कुल नास्तिकों में से करीब 67% अकेले रहते हैं।
जापान, स्वीडन, चेक गणराज्य, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा जैसे देशों में भी नास्तिकता को सामाजिक रूप से स्वीकार किया जाता है और वहां की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा किसी धर्म या ईश्वर में विश्वास नहीं करता। उदाहरण के लिए, यूके और फ्रांस में करीब 40% लोग खुद को नास्तिक मानते हैं।
कौन से देश हैं शीर्ष 10 में
एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व के 89% नास्तिक केवल 10 देशों में रहते हैं। चीन के बाद अमेरिका इस सूची में दूसरे स्थान पर आता है, जहां वर्ष 2020 तक 10.09 करोड़ लोग नास्तिक के रूप में दर्ज किए गए थे।
इसके अलावा:
जापान में 7.26 करोड़
वियतनाम में 6.64 करोड़
जर्मनी में 3.02 करोड़
रूस में 2.96 करोड़
ब्राजील में 2.81 करोड़
फ्रांस में 2.81 करोड़
यूके में 2.71 करोड़
साउथ कोरिया में 2.50 करोड़ नास्तिक हैं।
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि विकसित देशों में धर्म से दूरी बनाना तेजी से बढ़ता रुझान बनता जा रहा है।
भारत में स्थिति क्या है
अगर बात भारत की करें तो यहां धार्मिक विश्वासों की जड़ें बेहद गहरी हैं। शायद यही कारण है कि 2020 तक भारत में केवल 50,000 लोग ही खुद को नास्तिक के तौर पर दर्ज कर पाए। यह आंकड़ा 2010 में महज 30,000 था, यानी 10 सालों में केवल 20,000 लोगों ने ही खुद को इस श्रेणी में रखा।
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