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2024 चुनाव में बहुत कम वक्त बचा है। इसको देखते हुए सियासी दल तैयारियों में जुटे हैं। विपक्ष ने जहां मोदी लहर को रोकने के लिए इंडिया नाम से नया गठबंधन बनाया है तो वहीं विपक्ष के एकजुट होने के बाद सत्तारूढ़ एनडीए को भी अपनी रणनीति को बदलना पड़ा है।

बीजेपी नेतृत्व वाला एनडीए अपने गठन की रजत जयंती मना रहा है। पूर्व की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में बीजेपी की सहयोगी दलों पर निर्भरता के चलते एनडीए का काफी महत्व था। लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में भाजपा का अपना बहुमत होने से एनडीए की उतनी धमक नहीं रही है।

हालांकि बीते दो महीने से एनडीए की सक्रियता देखी जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह अधिकांश विपक्षी दलों का नया गठबंधन तले एकजुट होना है। भाजपा नेतृत्व ने बीते दिनों एनडीए के घटक दलों के नेताओं, सांसदों के साथ अपना सम्मान बढ़ाया है। आपसी गर्मजोशी भी देखी जा रही है। संसद सत्र के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने सभी घटक दलों के नेताओं के साथ बैठक की थी। इसके बाद संसद सत्र के दौरान एनडीए सांसदों के साथ प्रधानमंत्री ने अलग अलग समूहों में बैठक की।

भाजपा के नेताओं को भी कहा गया कि वो भी प्रदेश और जिला स्तर पर सहयोगी दलों के सतत संपर्क में रहें। मिशन 2024 के लिए भाजपा के अभियान में भी एनडीए को प्रमुखता दी जाएगी। चुनाव प्रचार की थीम में भाजपा के साथ एनडीए का भी खासा उल्लेख होगा। साथ ही अलग अलग राज्यों में विभिन्न घटक दलों की प्रचार सामग्री में उनके नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी को खासतौर पर सामने रखा जाएगा।

BJP को सता रही ये चिंता

सूत्रों के अनुसार भाजपा को सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं विपक्ष का इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनावों में राज्यवार तालमेल करके न उतरे। इस बात की भी संभावना जताई जारी की विपक्षी खेमा हर राज्य की अलग रणनीति पर काम करेगा ताकि उसके खेमे के सभी अपने अपने राज्यों में अधिकतम एकजुटता का प्रदर्शन करें। इस तरह की एकजुटता अगर बनती है तो भाजपा के लिए भी चुनौती बढ़ेगी। हालांकि भाजपा ने इसकी काट के लिए एनडीए की ताकत बढ़ानी शुरू कर दी है। 

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