पितृपक्ष का मूल मंत्र तो एक ही है और वह है पितरों का सम्मान। पितरों के सम्मान में ही पितृपक्ष में हिंदू परिवारों में अलग-अलग तरीकों से कर्मकांड किए जाते हैं जिसे श्राद्ध कहते है। स्मृति और भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं। यह स्थिति में पांच प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख है तो मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के बताए गए हैं।
तीन प्रकार के होते हैं श्राद्ध
मत्स्य पुराण के अनुसार नित्य, नैमित्तिक और काम्य भेद से श्राद्ध तीन प्रकार के होते हैं। यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है। इनमें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण हैं।
हर दिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं
प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेव नहीं होते।हिंदू मान्यता के अनुसार नौ देवताओं के एक विशेष समूह को विश्वेदेव कहते हैं। अपनी कुल परंपरा के अनुसार प्रतिदिन तर्पण करना और भोजन करने से पहले गौ ग्रास निकालना ही नित्य श्राद्ध है। इसमें विश्वेदेव नहीं होते। अशक्तावस्था में केवल जल देने से भी इस श्राद्ध की पूर्ति हो जाती है।
एकोदिष्ट श्राद्ध
एकोदिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। इसमें भी विश्वेदेव नहीं होते।
काम्य श्राद्ध
किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध को काम्य श्राद्ध कहते हैं।
विशेष श्राद्ध
मुंडन, उपनयन, विवाह आदि विशेष अवसर पर जाने वाले श्राद्धों को विशेष श्राद्ध कहते हैं। इस प्रकार के श्राद्धों में नांदिमुख, नाग बली, नारायण बलि और त्रिपिंडी आदि श्राद्ध प्रसिद्ध है।
पार्वण श्राद्ध
पित्र पक्ष, अमावस्या या पर्व की तिथि आदि पर जो सदैव (विश्वदेव सहित) श्राद्ध किया जाता है, उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं।
पुष्टयर्थ श्राद्ध
विश्वामित्र स्मृति तथा भविष्य पुराण में 12 तरह के श्राद्ध बताए गए हैं। इन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिंडन, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्मांग, दैविक, यात्रार्थ और पुष्टयर्थ कहा जाता है।
सपिंडन श्राद्ध
जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिंडों से सम्मेलन किया जाए, उसे सपिंडन श्राद्ध कहते हैं।
गोष्ठी श्राद्ध
समूह में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्टी श्राद्ध कहते हैं।
शुद्धयर्थ श्राद्ध
शुद्धि के लिए जिस श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है उसे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं।
कर्मांग श्राद्ध
गर्भाधान, सीमांतोन्नयन और पुंसवन आदि संस्कारों में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे कर्मांग श्राद्ध कहते हैं।
दैविक श्राद्ध
सप्तमी आदि तिथियों में विशिष्ट हविष्य के द्वारा देवताओं के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है, उसे दैविक श्राद्ध कहते हैं।
यात्रार्थ श्राद्ध
तीर्थ के उद्देश्य से देशांतर जाने के समय द्वारा जो श्राद्ध किया जाता है, उसे यात्रार्थ श्राद्ध कहते हैं।
पुष्टयर्थ श्राद्ध
शारीरिक या आर्थिक उन्नति के लिए जो श्राद्ध किया जाता है, उसे पुष्टयर्थ श्राद्ध कहते हैं।
उपर बताए गए सभी श्राद्ध श्रौत और स्मार्त—भेद से दो प्रकार के होते हैं। पिंड पितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं और एकोदिष्ट, पार्वण और तीर्थ श्राद्ध से लेकर मरण तक के श्राद्ध को स्मार्त श्राद्ध कहते हैं।
मुक्ति दिलाती है गंगा
महाभारत के अनुसार वशिष्ठ द्वारा शापित सात वसुओं ने गंगा से प्रार्थना की कि वे उनकी माता बनें। गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं और इस शर्त पर राजा शांतनु की पत्नी बनी की कभी वह उनसे प्रश्न नहीं करेंगे, अन्यथा वह उनको छोड़कर चली जाएंगी। सात वसुओं ने उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया और गंगा ने एक-एक कर सब को अपने पानी में बहाकर वशिष्ठ ऋषि के श्राप से मुक्ति दिलाई।
गंगा किनारे श्राद्ध का उद्देश्य यही है कि यहां धार्मिक स्थापनाओं, मान्यताओं और प्रचलनों का संपर्क मिल जाता है और जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसी मान्यता को मानते हुए लोग गंगा की जलधारा में तर्पण और पिंडदान करते हैं ताकि पितरों को मुक्ति प्राप्त हो।