गरूड़ पुराण के अनुसार, पितृ-पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं। लेकिन श्राद्ध क्रिया के कुछ नियम होते हैं। जिनका पालन करना जरूरी है।
श्राद्ध के लिए सोना-चांदी, कांसा और तांबे के पात्र को उत्तम माना गया है। यहां तक की पत्तों का भी इस्तेमाल किया जाता है। पर केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन निषेध है। लोहे के बर्तनों का भी इस्तेमाल वर्जित कहा गया है। पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिटटी के बर्तनों के उपयोग पर जोर दिया गया है। लेकिन इस पर भी अलग अलग मत हैं। वैसे तर्पण में मिटटी के बर्तनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। बल्कि उसमें दोनों व पत्तलों का इस्तेमाल किया जाता है।
किन चीजों का कर सकते हैं उपयोग
श्राद्ध में पका या बिना पका अन्न प्रदान करके पुत्र अपने पितृ को सुख दे। श्राद्ध में गाय का दूध और उससे बनी खादय सामग्रियां प्रयोग की जा सकती है। इसके अलावा जौ, धान, गेहूं, तिल, मूंग, आम, बेल, अनार, आंवला, खीर, नारियल, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, चिरा।जी, बेर, इंद्र जौ, मटर, सरसों का तेल, तिल्ली का तेल उपयोग में लाना चाहिए।
इन चीजों का नहीं करें उपयोग
उड़द, मसूर, अरहर, गाजर, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, सुपारी, कुलथी, कैथ, महुआ, अलसी, पीली सरसों, चना, मांस, अंडा आदि का इस्तेमाल निषेध है।