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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में पंचायत चुनाव का माहौल गरमा रहा है, लेकिन इस बार एक ऐसी खामोश नाराजगी भी देखने को मिल रही है जो लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ी है। एक ओर जहां मतदान की तैयारियां चरम पर हैं, वहीं दूसरी ओर 3395 ऐसे कर्मचारी हैं जो इस चुनाव में ड्यूटी तो निभाएंगे, लेकिन स्वयं अपने मताधिकार का उपयोग नहीं कर पाएंगे। सवाल यह उठता है कि क्या जो लोग मतदान को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण बनाने की जिम्मेदारी उठाते हैं, उन्हें खुद वोट देने से वंचित कर देना न्यायसंगत है?

गाइडलाइन की कमी से लोकतांत्रिक अधिकार बाधित

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर तैनात इन हजारों कर्मचारियों के लिए निर्वाचन आयोग की ओर से कोई विशेष व्यवस्था या दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। नतीजतन, ये कर्मचारी मतदान वाले दिन अपने बूथ से मीलों दूर ड्यूटी पर होंगे और वोट डालने का उनका अधिकार महज़ एक अधूरी उम्मीद बनकर रह जाएगा।

सीडीओ एसएल सेमवाल ने इस संबंध में स्पष्ट किया कि आयोग द्वारा पंचायत चुनाव में मतदानकर्मियों के लिए किसी प्रकार की विशेष वोटिंग प्रक्रिया, जैसे कि पोस्टल बैलेट, की अनुमति नहीं दी गई है। यही कारण है कि ड्यूटी में लगे कर्मचारी अपने गृह मतदान क्षेत्र में मतदान नहीं कर सकेंगे।

शिक्षक संगठनों और कर्मचारियों में रोष

इस मुद्दे ने कर्मचारी संगठनों और शिक्षक संघों में नाराजगी पैदा कर दी है। राजकीय शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अतोल महर ने तीखा सवाल उठाते हुए कहा कि विधानसभा, लोकसभा और निकाय चुनावों में मतदान कर्मियों के लिए डाक मतपत्र (पोस्टल बैलेट) की सुविधा उपलब्ध होती है, लेकिन पंचायत चुनाव में उन्हें यह सुविधा क्यों नहीं मिल रही?

उनका तर्क है कि चूंकि अधिकतर कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित हैं और उनके नाम स्थानीय मतदान केंद्रों में दर्ज हैं, ऐसे में उनकी अनुपस्थिति से न सिर्फ उनका लोकतांत्रिक अधिकार छीना जा रहा है, बल्कि उन गांवों में मतदान प्रतिशत पर भी सीधा असर पड़ रहा है। उन्होंने मांग की कि भविष्य में पंचायत चुनावों में भी अन्य चुनावों की तरह मताधिकार का उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

प्रशासनिक तैयारियां पूरी, लेकिन अधिकार अधूरा

उत्तरकाशी ज़िले में पंचायत चुनावों के लिए प्रशासन ने जोनल और सेक्टर स्तर पर पूरी तैयारी कर ली है। 20 जोनल मजिस्ट्रेट, 76 सेक्टर मजिस्ट्रेट और 50 प्रभारी अधिकारियों की नियुक्ति की गई है, ताकि मतदान प्रक्रिया में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो। लेकिन इस सुव्यवस्थित तंत्र के बीच ड्यूटी पर तैनात कर्मियों के अपने मताधिकार की अनदेखी अब प्रशासनिक लापरवाही के रूप में सामने आ रही है।

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