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भारत के पूर्व सैनिकों को फांसी की सजा सुनाकर चर्चा में आया खाड़ी का छोटा सा मुस्लिम देश। पिछले कुछ सालों से इंटरनेशनल स्तर पर बड़े बड़े खेल कर रहा है। दो साल पहले कतर ने ही तालिबान और अमेरिका के बीच डील कराई थी। इसके बाद अमेरिका अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले करके वापस लौट गया था।

मौजूदा इसराइल फिलिस्तीन विवाद में भी कतर के जरिए ही अमेरिका गाजा पट्टी से अपने बंधकों को हमास के कब्जे से छुड़ाने की बात कर रहा है। कतर का क्षेत्रफल भले ही काफी छोटा है, लेकिन वह बड़े बड़े इंटरनेशनल मसलों में अहम भूमिका निभा रहा है। और तो और पिछले साल फीफा वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट का आयोजन भी कर चुका है। लेकिन क्या आपको पता है कि करीब 100 साल पहले तक कतर इंसानों के रहने के लायक भी नहीं माना जाता था। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग या मछुआरे थे या समंदर से मोती चुनने का काम करते थे।

सन् 1930 के दशक में जब जापान ने मोतियों का उत्पादन शुरू किया तो कतर के लोगों की रोजी रोटी भी छिन गई और ज्यादातर लोग दूसरे देशों में चले गए। उस वक्त तक कतर की आबादी 25,000 से भी कम रह गई थी। लेकिन पहले विश्वयुद्ध के बाद मिडिल ईस्ट का इलाका ओटोमन साम्राज्य के हाथ से निकलकर ब्रिटेन के पास चला गया और उसने यहां तेल की खोज कर ली।

ऐसे बदली कतर की तकदीर

बस यहीं से कतर की किस्मत बदलने लगी। हालांकि तेल का उत्पाद दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1940 में शुरू हो सका, लेकिन इसके साथ ही कतर में लोगों के बसने का सिलसिला शुरू हो गया। 1970 तक कतर की आबादी 1 लाख हो गई। 1971 में ब्रिटेन ने कतर को छोड़ दिया और यह आजाद इस्लामिक मुल्क बन गया। कतर की तकदीर में असली बदलाव इसके बाद ही हुआ और यहां कच्चे तेल के अलावा नेचुरल गैस का भी बहुत बड़ा भंडार मिला। इसके बाद तो कतर की इकोनॉमी ने ऐसी स्पीड पकड़ी। इसके साथ ही अरब देश भी पीछे छूट गए। 

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