भगवान शिव अपने भक्तों की आराधना से बहुत जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनके इसी सरल व्यहार के वजह से वह भक्तजनो के बीच भोलेनाथ बाबा के नाम से भी प्रसिद्ध है। हिंदू धर्म व ज्योतिष शास्त्र मे इस बात का उल्लेख है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की अराधना के साथ साथ यदि शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का भी पाठ व स्मरण किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में आने वाली सारी परेशानियां व बाधाऐ कम हो जाती हैं। प्रत्येक सोमवार के दिन शिव चालीसा का पाठ करना बहुत ही लाभकारी माना गया है।
हिंदू धर्म में यदि ईश्वर (god) की बात चल रही हो भगवान शिव (Lord Shiva) का नाम ना आये यह तो असंभव है। भगवान शिव कालों के काल है। भगवान शिव (Lord Shiva) के कई और भी नाम है जैसे महादेव, भगवान शंकर और भोलेनाथ। हिंदू धर्म में सप्ताह( week)के प्रत्येक दिन को किसी न किसी देवता या देवी को समर्पित किया गया है। जैसे कि मंगलवार भगवान हनुमान जी को ,बुधवार भगवान गणेश को ,वृहस्पतिवार भगवान विष्णु को ठीक इसी तरह से सोमवार का दिन भगवान शिव शंकर (Shiv Chalisa) को समर्पित किया गया है। माना जाता है इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते है।और अपने भक्तो के सभी कष्ट दूर करते है।
यदि आप नियम पूर्वक भगवान भोलेनाथ के शिव चालीसा का पाठ (Shiv Chalisa Path)सोमवार के दिन को मन से करते है तो अपने नाम के अनुरूप भगवान भोलेनाथ की कृपा अवश्य होती है। भगवान शिव शंकर मनुष्य की सारी मुसीबत को हर लेते है और साथ ही साथ सारी परेशानियां और बाधाओं को भी दूर कर देते है।
शिव चालीसा (Shiv Chalisa)
||दोहा||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
चौपाई
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
||दोहा ||
बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार
तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय
दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥
कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥
।। इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।। (Shiv Chalisa)