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सपा और कांग्रेस ने यूपी में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर समझौता कर लिया है। भले ही एक हफ्ते से ज्यादा वक्त हो गया हो, लेकिन राज्य में कांग्रेस अभी भी संकट में है।

समझौते के मुताबिक, सपा ने 80 में से 17 सीटें कांग्रेस को दी हैं, बाकी 63 सीटों पर सपा अपने उम्मीदवार उतारेगी। लेकिन, राज्य में कांग्रेस के एक गुट के मुताबिक, पार्टी को उतनी सीटें नहीं मिलीं जितनी वह चाहती थी। इन नेताओं ने छह सीटों का जिक्र किया जिन पर उन्होंने 1980 के बाद से कभी जीत नहीं हासिल की है।

कांग्रेस की आखिरी जीत 1984 के चुनावों में प्रयागराज, अमरोहा, बुलन्दशहर, सहारनपुर और देवरिया में थी, जबकि पार्टी की आखिरी जीत 1989 में सीतापुर निर्वाचन क्षेत्र में थी। कई ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस को सपा से समर्थन की उम्मीद नहीं है, क्योंकि इन विधानसभा क्षेत्रों में सपा के वोटर भी कम हैं।

यूपी सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस नेताओं में असंतोष

1996 में सपा ने सीतापुर सीट पर जीत हासिल की थी। तब से यह निर्वाचन क्षेत्र बसपा और भाजपा उम्मीदवारों द्वारा जीता गया है। सीतापुर में कुर्मी वोटों की अच्छी खासी आबादी है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि वे लखीमपुर खीरी सीट चाहते हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र में प्रमुख कुर्मी (ओबीसी) नेता और पूर्व सपा सांसद रवि वर्मा और उनकी बेटी पूर्वी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन कांग्रेस को लखीमपुर खीरी की बजाय पड़ोसी सीट सीतापुर दे दी गई।

सूत्रों ने कहा कि पार्टी अब वर्मा को सीतापुर से चुनाव लड़ने के लिए कहेगी। पार्टी को इस सीट से कुर्मी मतदाताओं को लुभाने की उम्मीद है। इसका असर पड़ोसी राज्य बाराबंकी में कुर्मी मतदाताओं पर भी पड़ेगा, जिसका फायदा कांग्रेस को होगा। क्योंकि इस सीट से पूर्व सांसद पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं।

सपा नेता रशीद मसूद आखिरी बार 2004 में सहारनपुर से जीते थे। तब से यह सीट भी बसपा या भाजपा ही जीतती रही है। 2020 में राशिद की मौत के बाद इमरान मसूद इलाके में अल्पसंख्यक चेहरा बन गए, जो अब कांग्रेस के साथ हैं और संभावित उम्मीदवार भी हैं। प्रयागराज सीट आखिरी बार 2004-2009 में सपा के रेवती रमण सिंह ने जीती थी। 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने यह सीट जीती थी। यह सीट अब कांग्रेस को दे दी गई है। यह पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनके प्रयासों के बावजूद, सपा ने पार्टी को दो सीटें दे दीं, अर्थात् सहारनपुर और अमरोहा, जहां अल्पसंख्यक वोटों का प्रतिशत 25 प्रतिशत से अधिक था।
 

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