
इस देश में सभी को यह पता होना चाहिए कि भारत का संविधान यद्यपि संघीय ढांचे का पोषक है ,किन्तु भारत के संघीय ढांचे में केंद्र को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। बिना केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए समस्याग्रस्त भारत के लोग अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते और केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए व्यापक गोलबंदी और एकजुटता की आवश्यकता है।
किसान , उत्पादक श्रमिक समाज ,शिल्पकार ,दस्तकार ,आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय भारत देश का बहुसंख्यक समाज है ,किंतु दुर्भाग्य है कि केन्द्र की शासन सत्ता में इनकी प्रभावी भागीदारी नहीं हो पा रही है। इसका कारण है कि इन वर्गों में से कोई भी व्यापक सोच ,लोकतांत्रिक संगठन और व्यापक आधार वाली पार्टी का निर्माण नहीं हो पा रहा है ।
इसका कारण यह है कि इन लोगों के बीच जितने भी दल बने हुए हैं – सभी को एक जाति ,एक परिवार और एक व्यक्ति को संप्रभु ,मुखिया ,नेता और अगुआ मानकर विकसित किया गया है। ज्यादातर इन पार्टियों के मुखिया अपने और अपने परिवार के हित में पार्टी को विकसित कर रहे हैं ,इसीलिए वे आजीवन पार्टी के मुखिया बने रहते हैं और उनके बाद उनके परिवार के अध्यक्ष ।आजीवन मुखिया बने रहने के कारण ये दल एक जाति, एक वंश/परिवार और एक व्यक्ति की पार्टी हो जाती है ।
इस कारण अन्य समाज के लोगों का असंतुष्ट होना स्वाभाविक है और असंतुष्ट समाज के लोग भी एक नए दल की स्थापना कर लेते हैं । नए दल में भी एक व्यक्ति आजीवन राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाता है। यह शृंखला निरंतर इन लोगों के बीच जारी है ,जिससे आज पूरे देश में लगभग दो हजार से अधिक राजनीतिक दल निर्मित हो गए हैं ।
सभी दल में एक ही व्यक्ति आजीवन राष्ट्रीय अध्यक्ष रहता है और सभी दल एक जाति ,एक परिवार और व्यक्ति के पोषक हैं ,जिसके कारण आज पूरे देश में नब्बे प्रतिशत बहुजन समाज होते हुए भी इनके बीच से कोई भी एक व्यापक राष्ट्रीय स्तर का दल नहीं बन पा रहा है ।ऐसे भी दल नहीं बन पा रहे हैं ,जो एक से अधिक राज्यों में अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाकर शासन सत्ता पर क़ाबिज़ हो सके ।पूरे देश में ऐसा कोई दल नहीं है ,जिसका संगठन लोकतांत्रिक हो और जहाँ विभिन्न समाज के लोग राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सके ।पूरे देश में इन लोगों के बीच से कोई ऐसा नेता नहीं है ,जिसे उसकी जाति के अतिरिक्त अन्य कोई जाति श्रद्धा और सम्मान की दृष्टि से देखती हो।
इस देश का किसान ,शिल्पकार , दस्तकार, उत्पादक ,श्रमिक ,आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज इस देश का नब्बे पर्सेंट बहुसंख्यक समाज है। दुर्भाग्य है कि इन लोगों ने गोलबंदी और एकजुटता करके कोई भी राष्ट्र-स्तरीय, व्यापक ,लोकतांत्रिक चरित्र ,संगठन ,संस्कार एवं व्यवहार का राजनीतिक दल नहीं बना पाया । इनके इस देश में शासन सत्ता से वंचित होने का यही सबसे बड़ा कारण है और शासन सत्ता से बंचित होने के कारण ही सारी समस्याओं का जन्म हुआ है आज नब्बे प्रतिशत लोगों की राजनीति जिस मोड़ पर है ,ऐसे में बिना लोकतांत्रिक पार्टी के कोई भी समाधान असंभव है ।लोकतांत्रिक पार्टी बनाने का विमर्श कुछ लोग निहित स्वार्थवश जानबूझकर नहीं शुरू करना चाहते हैं और कुछ लोगों को इसकी समझ भी नहीं है ।
Democracy needs change and wide representation . Dominance of a single caste, family and person is against democratic ethos. This anti-democratic attitude is strongly promoted and guarded by most of Bahujan parties and casteist leaders.
केंद्र और राज्य में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इस देश के विभिन्न समाज के लोगों को बैठना चाहिए। इस देश में पार्टी ही नहीं ,राज्य और केंद्र की मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले लोगों का जाति वर्ग भी बदलनी चाहिए। यह तभी संभव है जब बहुजन समाज की पार्टी लोकतांत्रिक हो और लोकतांत्रिक संगठन के कारण विभिन्न जातियों और समाज के लोग पार्टी के मुखिया बने ,अध्यक्ष बने और पार्टी का नेतृत्व करें।
ऐसा होने पर ही यह संभव हो पाएगा कि शासन सत्ता में पार्टी के आने पर विभिन्न जाति वर्ग के लोग इस देश में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होंगे ।पार्टी में लोकतांत्रिकरण होने के बाद ही शासन सत्ता के कुर्सियों पर आसीन होने की स्थिति का भी लोकतांत्रिकरण संभव हो पायेगा।
सम्यक पार्टी इसी विचार विमर्श और अभियान को पूरे देश में शुरू कर रही है।
सम्यक पार्टी आम जन के बीच यह आवाज़ बुलंद कर रही है कि अगर सभी को अपने उत्पीड़न, शोषण, ग़रीबी , अशिक्षा से उबरना है ,तो केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ होना पड़ेगा और केंद्र पर सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए हमें लोकतांत्रिक पार्टी बनाना पड़ेगा। सम्यक पार्टी के रूप में हम सभी एक ऐसी पार्टी विकसित करने के मुहिम का आगाज किया हैं ,जिसमें कभी किसी समाज का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा और कभी किसी समाज का ।कभी किसी प्रांत का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा, तो फिर कभी किसी प्रांत का। जहां जातिवाद ,क्षेत्रवाद , भाषावाद व धर्मवाद ,व्यक्तिवाद ,परिवारवाद और वंशवाद न होकर सिर्फ़ और सिर्फ़ होगा लोकतंत्र .लोकतंत्र .लोकतंत्र।
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