Up Kiran, Digital Desk: राजनीति में हार का मतलब हमेशा आत्मचिंतन और सवालों का दौर होता है. हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन ने एक बार फिर पार्टी के अंदरुनी सवालों को हवा दे दी है. अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने इस 'फ्लॉप शो' पर खुलकर अपनी बात रखी है. उनके बयान से साफ झलक रहा है कि पार्टी में सब ठीक नहीं है और हार के बाद जवाबदेही तय करने का दबाव बढ़ गया है.
"मुझे तो बिहार में प्रचार के लिए बुलाया ही नहीं!"
शशि थरूर ने पत्रकारों से बात करते हुए साफ शब्दों में कहा कि उन्हें बिहार चुनाव में प्रचार के लिए आमंत्रित (invited to campaign) नहीं किया गया था. यह बात अपने आप में कांग्रेस के अंदर चल रहे तालमेल की कमी और बड़े नेताओं की अनदेखी की ओर इशारा करती है. थरूर ने कहा कि जब वह खुद वहां नहीं थे और उन्हें व्यक्तिगत अनुभव (personal experience) के आधार पर ज्यादा कुछ पता नहीं है, तो वह ज्यादा टिप्पणी नहीं कर सकते. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस को अपनी हार के कारणों की विस्तार से जांच करनी चाहिए.
कांग्रेस "जूनियर पार्टनर" थी, RJD भी अपने गिरेबां में झांके!
थरूर ने अपनी बात में एक और महत्वपूर्ण बिंदु उठाया. उन्होंने कहा कि, "याद रखिए, हम गठबंधन में 'सीनियर पार्टनर' (senior partner) नहीं थे." यह इशारा राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की तरफ था, जो बिहार में महागठबंधन का बड़ा चेहरा था. थरूर ने यह भी कहा कि राजद को भी अपने प्रदर्शन (RJD also has to look carefully at its own performance) का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए. इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस केवल अपनी हार के लिए ही नहीं, बल्कि गठबंधन के अन्य बड़े सहयोगियों को भी इसकी ज़िम्मेदारी लेने को कह रही है.
क्या हैं हार के कारण? संगठन, संदेश और जनता का मूड
शशि थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि बिहार जैसे चुनाव परिणामों में, पार्टी के समग्र प्रदर्शन (totality of the party's performance) की जांच करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि चुनाव कई कारकों पर निर्भर करते हैं:
- जनता का मूड: यह समझना होगा कि मतदाताओं का मूड क्या था और वे किस पार्टी या गठबंधन की तरफ झुक रहे थे.
- संगठनात्मक कमियाँ: पार्टी के संगठन की ताकत और कमजोरियां (organisation's strengths and weaknesses) क्या थीं, यह जानना जरूरी है. जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता कितना सक्रिय थे और किस स्तर पर काम हो रहा था.
- सही संदेश का अभाव: पार्टी का संदेश (messaging) क्या था और क्या वह जनता तक प्रभावी ढंग से पहुंच पाया? क्या मुद्दों को सही तरीके से उठाया गया था या उनमें कमी थी?
कुल मिलाकर, शशि थरूर के बयान से कांग्रेस के भीतर चल रहे आत्मचिंतन और आगामी बैठकों की झलक मिल रही है. बिहार के नतीजे पार्टी के लिए एक बड़ा सबक हैं, और अब देखना होगा कि कांग्रेस इन सीखों से भविष्य में क्या बदलाव लाती है.




