वृक्षों की पूजा सनातन धर्म की समृद्ध परंपरा और भारतीय जीवनशैली का अंग रहा है। हमारे देश में वैसे तो हर पेड़-पौधे को उपयोगी जानकर उसकी रक्षा करने की परंपरा है, लेकिन वटवृक्ष या बरगद की पूजा का खास महत्व बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों में वट वृक्ष की बड़ी महिमा गए गई है। वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। यह वृक्ष लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे ‘अक्षयवट’ भी कहते हैं।अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा प्राचीन काल से होती आई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार अक्षयवट के पत्ते पर ही प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे। देवी सावित्री भी वटवृक्ष में निवास करती हैं। प्रयाग में गंगा के तट पर स्थित अक्षयवट की महिमा का बखान गोस्वामी तुलिदास ने रामचरित मांस में भी किया है। तुलसी ने अक्षयवटको ‘तीर्थराज का छत्र’ कहा है। वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया इसलिए इसे ‘वट सावित्री’ के नाम से भी जाना जाता है। वटवृक्षों की संख्या बताया गया हैं – ये हैं- अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट।
धार्मिक और पौराणिक महत्व के साथ ही वट वृक्ष का औषधीय महत्व भी है। वट वृक्ष के सभी भाग चिकित्सा में काम आते हैं। इसके फल, जड़, छाल, पत्ती आदि सभी भागों से कई तरह के रोगों का नाश होता है। इसके अलावा वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन देने में भी वट वृक्ष की क्षमता बेजोड़ है। वास्तव में वट वृक्ष जीवनदाई है।