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Up Kiran, Digital Desk: संविधान में दिए गए पदों का सम्मान कितना ज़रूरी है, इसे लेकर अक्सर बहस होती रहती है. खासकर जब बात आती है राष्ट्रपति या राज्यपाल की तरफ से विधानसभा या संसद से पास हुए विधेयकों (बिलों) पर फैसले लेने की. हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है. कोर्ट का कहना है कि वे राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए किसी बिल को मंजूरी देने की कोई समय-सीमा तय नहीं कर सकते.

आखिर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात क्यों कही?

दरअसल, यह सवाल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ही संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछा था. उन्होंने जानन चाहा था कि क्या अदालतें यह तय कर सकती हैं कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी विधेयक कोकब तक रोक सकते हैं या कब तक उस पर फैसला ले सकते हैं. इस पर पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसा करना 'शक्तियों के पृथक्करण' के सिद्धांत के खिलाफ गा. इसका सीधा सा मतलब है कि न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका—तीनों की अपनी-अपनी भूमिकाएं और अधिकार क्षेत्र तय हैं, और कोई भी दूसरे के काम में बेवजह दखल नहीं देगा.

कोर्ट ने यह भी साफ किया कि किसी विधेयक पर समय-सीमा पार होने पर उसे 'मन्य' मान लेना भी संविधान की भावना के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि भले ही संविधान ने विधेयकों पर फैसले के लिए कोई खास समय-सीमा तय न की हो, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि राज्यपाल बिल को अनंतकाल तक रोक कर रखें. उन्हें बिल या तो मंजूरी देनी होगी, या उसे पुनर्विचार के लिए सदन को वापसभेजना होगा, या फिर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए आरक्षित रखना होगा. राज्यपाल का विधेयक को सिर्फ रोकना, संघवाद की भावना के विपरीत होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि राज्यपाल को विधानमंडल के साथ मिलकर मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहए, न कि बाधा डालने वाली भूमिका निभानी चाहिए. आखिरकार, एक चुनी हुई सरकार को ही ड्राइविंग सीट पर होना चाहिए.

संविधान में दिए गए पदों का सम्मान कितना ज़रूरी है इसे लेकर अक्सर बहस होती रहती है. खासकर जब बात आती है राष्ट्रपति या राज्यपाल की तरफ से विधानसभा या संसद से पास हुए विधेयकों (बिलों) पर फैसले लेने की. हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है. कोर्ट का कहना है कि वे राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए किसी बिल को मंजूरी देने की कोई समय-सीमा तय नहीं कर सकते. आखिर सुप्रीम कोर्ट ने यह ब यह सवाल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ही संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछा था. उन्होंने जानन[1][2][3][4]ा चाहा था कि क्या अदालतें यह तय कर सकती हैं कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी वि कार्यपालिका और विधायिका—तीनों की अपनी-अपनी भूमिकाएं और अधिकार क्षेत्र तय हैं और कोई भी दूसरे के काम में बे[6][8][12]वजह दखल नहीं देगा. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि किसी विधेयक पर समय-सीमा पार होने पर उसे 'म[1][2][12]ान्य' मान लेना भी संविधान की भावना के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि रा[1][5]ज्यपाल बिल को अनंतकाल तक रोक कर रखें. उन्हें बिल या तो मंजूरी देनी होगी या उसे पुनर्विचार के लिए सदन को वापस[5][6][12][13][14][15] भेजना होगा या फिर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए आरक्षित रखना होगा. राज्यपाल का विधेयक को सिर्फ रोकना संघवाद की भावना के विपरी[5][12][15][16][17]त होगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि राज्यपाल को विधानमंडल के साथ मिलकर मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाह[5][7][8][10][11][12][15][16][17][1 न कि बाधा डालने वाली भूमिका निभानी चाहिए. आखिरकार एक चुनी हुई सरकार को ही ड्राइविंग सीट पर होना चाहिए. ________________________________________ Click-Worthy Medium Titles Suggestions (Hindi): • बिल पर अनिश्चितकाल तक 'खामोशी' अब नहीं चलेगी: सुप्रीम क राज्यपाल और 'वक्त का पेंच': सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा हम टाइमलाइन नहीं देंगे? • बिलो[12] कोर्ट का कहना है कि वे राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए किसी बिल को मंजूरी देने की कोई समय-सीमा तय नहीं कर सकते. आखिर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात क्यों कही? दरअसल यह सवाल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ही संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछा था. उन्होंने जानना चाहा था कि क्या अदालतें यह तय कर सकती हैं कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी विधेयक को कब त कार्यपालिका और विधायिका—तीनों की अपनी-अपनी भूमिकाएं और अधिकार क्षेत्र तय हैं और कोई भी दूसरे के काम में बेवजह दखल नहीं देगा. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि किसी विधेयक पर समय-सीमा पार होने पर उसे 'मान्य' मान लेना भी संविधान की भावना के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि भले ह लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि राज्यपाल बिल को अनंतकाल तक रोक कर रखें. उन्हें बिल या तो मंजूरी देनी होगी या उसे पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेजना होगा या फिर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए आरक्षित रखना होगा. राज्यपाल का विधेयक को सिर्फ रोकना संघवाद की भावना के विपरीत होगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि राज्यपाल को विधानमंडल के साथ मिलकर मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए न कि बाधा डालने वाली भूमिका निभानी चाहिए. आखिरकार एक चुनी हुई सरकार को ही ड्राइविंग सीट पर होना चाहिए. ________________________________________ Click-Worthy Medium Titles Suggestions (Hindi): • बिल पर अनिश्चितकाल तक 'खामोशी' अब नहीं चलेगी: सुप्रीम क राज्यपाल और 'वक्त का पेंच': सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा हम टाइमलाइन नहीं देंगे? • बिलो[1][2][3] कोर्ट का कहना है कि वे राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए किसी बिल को मंजूरी देने की कोई समय-सीमा तय नहीं कर सकते.[1][2][4] आखिर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात क्यों कही? यह सवाल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ही संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछा था.[1][2][5] उन्होंने जानना चाहा था कि क्या अदालतें यह तय कर सकती हैं कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी विधेय कार्यपालिका और विधायिका—तीनों की अपनी-अपनी भूमिकाएं और अधिकार क्षेत्र तय हैं और कोई भी दूसरे के काम में बेवजह दखल नहीं देगा.[1][8][9] कोर्ट ने यह भी साफ किया कि किसी विधेयक पर समय-सीमा पार होने पर उसे 'मान्य' मान लेना भी संविधान की भावना के खिलाफ है.[2][9] सुप्रीम कोर्ट का मा लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि राज्यपाल बिल को अनंतकाल तक रोक कर रखें.[2][8][9][10] उन्हें बिल या तो मंजूरी देनी होगी या उसे पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेजना होगा या फिर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए आरक्षित रखना होगा.[2][8][9][10] राज्यपाल का विधेयक को सिर्फ रोकना संघवाद की भावना के विपरीत होगा.[2][8][9] सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि राज्यपाल को विधानमंडल के साथ मिलकर मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए न कि बाधा डालने वाली भूमिका निभानी चाहिए.[2] आखिरकार एक चुनी हुई सरकार को ही ड्राइविंग सीट पर होना चाहिए.[9] ________________________________________ Click-Worthy Medium Titles Suggestions (Hindi): • बिल पर अनिश्चितकाल तक 'खामोशी' अब नहीं चलेगी: सुप्री राज्यपाल और 'वक्त का पेंच': सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा हम टाइमलाइन नहीं देंगे? 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