लखनऊ। महराजगंज में तैनात रसूखदार पंचायतीराज विभाग के लेखाकार के पास करोड़ों की अवैध सम्पत्तिया हैं। लग्जरी गाड़ी और कई एकड़ जमीन उनकी तरक्की को दर्शा भी रही है। लगातार हो रही इनकी यह तरक्की संकेत दे रही है कि दाल में कुछ काला है। अहम यह है कि उन पर लाखो रूपये के गबन तक के आरोप लग चुके हैं। लेखाकार 30 साल से एक ही कुर्सी पर जमे हुए हैं। आखिरकार बड़े—बड़े अफसर उनकी फाइल पर कलम चलाने से क्यों हिचकते हैं? यह विवेचना का विषय है।
महराजगंज में तैनात प्रेमचन्द्र पाठक 30 साल से पंचायतीराज विभाग में ही लेखाकार के पद पर कार्यरत हैं। विभागीय जानकारों का कहना है कि वर्ष 20015—16 में महराजगंज के विकास खंड घुघली में क्षेत्र पंचायत के भुगतान में 1.08 करोड़ के गबन का आरोप पाठक पर लगा। उसके बाद तत्कालीन डीएम वीरेन्द्र सिंह ने उन्हें कार्यमुक्त भी कर दिया था। आन्तरिक लेखा अनुभाग लखनऊ में सम्बद्ध होते हुए फिर पाठक डेढ साल के अंदर महराजगंज की उसी कुर्सी पर काबिज हो गए। जानकारों का कहना है कि कूटरचित तरीके से आन्तरिक लेखा अनुभाग लखनऊ से मिलीभगत कर ही उन्होंने दोबारा अपना तबादला जनपद में कराया।
विभागीय सूत्रों का यह भी कहना है कि वर्ष 2016 में केंद्र सरकार की परियोजना परफार्मेंस ग्रांट में भी जनपद के गांवों के चयन में भी इन्हीं की प्रमुख भूमिका रही है। विभागीय जानकारों का कहना है कि उन्होंने विकास खंडों में तैनात सहायक विकास अधिकारी (पं0) के जबरदस्ती हस्ताक्षर कराकर ग्राम पंचायतों के चयन की कार्यवाही को अंजाम दिया। सवाल यह उठता है कि एक बाबू के पास इतनी सम्पत्ति कहां से आयी। वह भी तब जब उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में एक ही जनपद में लेखाकार के पद पर काम किया। ऐसे में यदि उनकी आय से अधिक सम्पति की जांच करायी जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो सकता है।
क्या कहते हैं डीपीआरओ महराजगंज
महराजगंज के डीपीआरओ यावर अब्बास का कहना है कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है। पता करके बताता हूं। उन्हें जनपद में हाल ही में तैनाती मिली है।
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