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Up kiran,Digital Desk : धनबाद की हवा में इन दिनों डर और ज़हर घुल गया है। ज़मीन के नीचे दशकों से बंद पड़ी कोयले की खदान अब एक ऐसा धीमा ज़हर उगल रही है, जिसने दो लोगों की सांसें हमेशा के लिए छीन ली हैं और हज़ारों लोगों की ज़िंदगी को दांव पर लगा दिया है।

यह कहानी है केंदुआडीह इलाके की, जहां लोग अपने ही घरों में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। उन्हें डर है कि अगली सांस शायद आखिरी हो।

क्या है यह पूरा मामला?

केंदुआडीह की एक कोयला खदान, जो सालों पहले बंद कर दी गई थी, उसके नीचे दबी ज़हरीली गैस अब अपना रास्ता बनाकर बाहर निकल रही है। यह गैस हवा में फैलकर राजपूत बस्ती, मस्जिद मोहल्ला और ऑफिसर्स कॉलोनी जैसे घनी आबादी वाले इलाकों तक पहुंच गई है।

हालात इतने गंभीर हैं कि जब बुधवार को गैस की जांच की गई तो इसकी मात्रा 50 PPM से ज़्यादा पाई गई। आसान भाषा में कहें तो हवा में ज़हर का स्तर इतना ज़्यादा है कि यहां सांस लेना भी जानलेवा साबित हो सकता है।

लोगों को किया जा रहा बेघर, पर जाएं तो जाएं कहां?

प्रशासन ने खतरे को देखते हुए लोगों से अपने घर खाली करने और किसी सुरक्षित जगह पर चले जाने की अपील की है। मदद के नाम पर टेंट लगाकर एक अस्थायी शेल्टर तो बना दिया गया है, लेकिन लोगों का सवाल सीधा और सच्चा है - “इस कड़ाके की ठंड में कौन अपना घर-बार छोड़कर एक टेंट के नीचे रहना चाहेगा?”लोगों का गुस्सा और डर अब सड़कों पर दिख रहा है।

यह सिर्फ हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है

मौके पर पहुंचे पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल ने भी माना कि स्थिति बहुत चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि पहली प्राथमिकता गैस के रिसाव को रोकना है। उन्होंने आशंका जताई कि खदान के मुहानों को जिस तरह से बंद किया गया है, शायद उसी वजह से गैस को निकलने का रास्ता नहीं मिला और अब वो आबादी की तरफ से बाहर आ रही है।

यह कहानी सिर्फ केंदुआडी-ह की नहीं है। धनबाद के कई और इलाके, जहां ज़मीन के नीचे कोयले की आग सुलग रही  वे भी एक ऐसे ही 'टाइम बम' पर बैठे हैं। सरकार की 16,000 परिवारों को सुरक्षित जगहों पर बसाने की योजना सालों से सिर्फ कागज़ों पर ही चल रही है।

केंदुआडीह की यह घटना एक दर्दनाक चेतावनी है कि अगर समय रहते इन सोए हुए 'दानवों' (बंद खदानों) का स्थायी समाधान नहीं निकाला गया, तो भविष्य में और भी भयावह मंजर देखने को मिल सकते हैं। फिलहाल, केंदुआडीह के लोग हर सांस के साथ डर के साये में जी रहे और उन्हें बस एक ही सवाल का जवाब चाहिए - “आखिर हम कब तक यूं ही मरते रहेंगे?”