यह किस्सा न तो लैला-मजनूं का है और न हीर-रांझा का। लेकिन ये के सच्चे प्रेम की यह अमर कहानी है। ये कहानी सोनांचल के हर शख्स की जुबां पर हमेशा रहती है। जिस किसी शख्स की नजर उत्तर प्रदेश के वाराणसी-शक्तिनगर हाईवे पर स्थित मारकुंडी घाटी में मध्य से कटे खड़े चट्टान पर पड़ती है तो उसके जेहन में लोरिक और मंजरी की प्रेम कथा ताजा हो जाती है।
बताया जाता है प्रेमिका मंजरी की इच्छा को पूरी करते हुए वीर लोरिक ने अपनी तलवार के सिर्फ एक वार से विशाल चट्टान को चीरकर अलग कलर दिया था और अपने प्रेम को अमर कर दिया था। वेलेंटाइंस डे हो या कोई और खास दिन। तमाम प्रेमी जोड़े आज भी इसी निशानी को साक्षी मानकर अपने प्रेम को अमर करने की कसमें खाते हैं।
बताया जाता है कि लोरिक और मंजरी की ये प्रेम कहानी 10वीं सदी की है। आदिवासी अंचल में मशहूर ये प्रेम कहानी न सिर्फ सच्चे प्रेम का संदेश दे रही है बल्कि युवाओं को अपनी संस्कृति और विरासत से जुड़ने के लिए भी प्रेरित करती है। कहा जाता है कि सोनभद्र के अगोरी स्टेट की रहने वाली मंजरी को बलिया के गौरा निवासी वीर लोरिक से प्रेम हो गया था।
उस वक्त वहां के अगोरी स्टेट पर राजा मोलाभागत का शासन था। मोलाभगत बेहद ही क्रूर और अत्याचारी शासक था। उसकी नजर मंजरी पर थी। राजा के मंसूबों से वाफिक मंजरी के पिता मेहर को जब अपनी बेटी के प्रेम के बारे में खबर मिली तो उन्होंने तुरंत वीर लोरिक को विवाह करने को कहा। इसके बाद लोरिक बारात लेकर चला लेकिन बीच में सोन नदी आ गई। यहां पर राजा मोलाभागत ने लोरिक को रोकने की असफल कोशिश की लेकिन युद्ध के बाद लोरिक अगोरी के किले तक पहुंचने में कामयाब रहा।
राजा और उसकी साड़ी सेना युद्ध में मारी जा चुकी थी। इसके बाद जब लोरिक मंजरी की विदाई कराकर लौटने लगे। जब बरात मारकुंडी पहाड़ी पर पर पहुंची तब मंजरी ने अपने पति के अपार और शौर्य को चुनौती देते हुए प्रेम की कोई ऐसी अमर निशानी बनाने को कहा जिसे लोग हमेशा तक याद रखें। रहे। मंजरी की इच्छा को पूरी करते हुए वीर लोरिक ने अपनी तलवार के एक वार से ही पहाड़ी पर स्थित एक विशाल चट्टान को बीच से चीर दिया।
यह विशाल चट्टान आज भी वहां मौजूद है। वेलेंटाइंस डे पर जब तमाम प्रेमी युगल अपने प्रेम का इजहार करते हैं तो अपने सच्चे प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए इस चट्टान का उदाहरण देना नहीं भूलते। बता दें कि हाईवे पर मारकुंडी घाटी में निर्मित वीर लोरिक पत्थर के पास वीर लोरिक की विशाल प्रतिमा भी स्थापित है। हर साल गोवर्धन पूजा पर यहां भव्य कार्यक्रम का आयोजन होता है। यादव समाज के लोग दूरदराज से यहां पहुंचते हैं और पूजन में शिरकत करतेहैं। माना जाता है कि लोरिक भी यदुवंशी थे।