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Up Kiran, Digital Desk: सीमांचल के छोटे लाल महतो बिहार के एक ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जो लगभग 20 साल से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन जीत-हार की परवाह नहीं करते। सिलेंडर डिलीवरी का काम करने वाले छोटेलाल को चुनावी मैदान में उतरना एक जुनून बन गया है। उन्हें भरोसा है कि एक दिन जरूर जीत हासिल होगी।

उनकी पत्नी गीता देवी भी इस जुनून में उनके साथ हैं। गीता मुर्गी और बकरी पालकर चुनाव खर्च के लिए पैसे जुटाती हैं। उनका कहना है, “मुर्गी-बकरी से अंडे बेचकर, 10-10 रुपये चुकिया में जमा करते हैं। चुनाव के वक्त यही चुकिया फोड़ते हैं और पैसे से पति को चुनाव लड़वाते हैं।”

हार से नहीं डरा छोटेलाल, पत्नी के साथ बना मजबूत जोड़ी

छोटेलाल महतो कहते हैं कि चुनाव के लिए जनता से चंदा मिलता है। उनकी पत्नी गीता देवी बताती हैं कि वे पति को हर बार पूरा सपोर्ट देती हैं। “जबतक जिंदा रहेंगे, चुनाव लड़वाएंगे। ऊपरवाला चाहेगा तो जीत भी मिलेगी। हार नहीं मानना है।”

उनकी इस जिद और मेहनत को देखकर पता चलता है कि लोकतंत्र में भागीदारी के लिए पैसों और ताकत से ज्यादा जज्बा जरूरी होता है। छोटेलाल और गीता की जोड़ी गरीबी के बावजूद उम्मीद की मिसाल है।

सिलेंडर पहुँचाने वाले से चुनावी मैदान के योद्धा तक का सफर

छोटेलाल अपने सिलेंडर पहुंचाने के काम से घर का खर्च निकालते हैं। वहीं, गीता मुर्गी-बकरी पालकर, अंडे बेचकर चुनावी खर्च जुटाती हैं। उनका यह संघर्ष हर किसी के दिल को छू जाता है।