महत्मा विदुर (Vidur Niti) की गिनती महाभारत काल के महान विद्वानों में होती है। वे हस्तिनापुर के महराजा धृतराष्ट के महामंत्री और सलाहकर भी थे। विदुर एक धर्मशील और न्यायप्रिय व्यक्ति थे। उनकी बातें व्यक्ति को विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। कहते है जो भी व्यक्ति उनकी नीतियों का सही ढंग से पालन कर लेता है, उसके उसका लक्ष्य जरूर प्राप्त हो जाता है। महात्मा विदुर की विदुर नीति में व्यक्ति के उन दुर्गुणों के बारे में बताया गया है. जो उसकी उन्नति में बाहड़क बनते हैं। इन दुर्गुणों की वजह से व्यक्ति जीवन भर दुःख झेलता है और उसे हर जगह अपमान भी सहना पड़ता है। आइए जानते हैं क्या है वे दुर्गुण
लालच
वे कहते है कि लालची व्यक्ति को जीवन में कभी सुखी नहीं मिलता है। वह अपने लालच को पूरा करने के लिए कोई भी पाप कर सकता है जिससे उसका मान सम्मान भी खत्म हो जाता है। (Vidur Niti)
अभिमान या घमंड
विदुर (Vidur Niti) कहते हैं कि जो व्यक्ति हर समय खुद की ही तारीफ़ करता रहता है और अपने को दूसरों से अधिक समझदार समझता है। ऐसा व्यक्ति अहंकारी होता है। ऐसे व्यक्ति को कभी भी अम्मान नहीं मिलता है। साथ ही उसे जीवन भर पैसों की तंगी झेलनी पड़ती है।
क्रोध
महात्मा विदुर (Vidur Niti) का कहना है कि क्रोध, व्यक्ति के नाश की मूल वजह है। वे कहते हैं कि जो लोग क्रोध में अपनी समझ और निर्णय लेने की क्षमता खो देते हैं, वे कई बार गुस्से में कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे उनका खुद का नुकसान हो जाता है। यही नहीं अधिक गुस्सा करने वाला व्यक्ति समाज में भी मान-सम्मान और धन वैभव नहीं पाता है।
त्याग और सर्मपण की भावना का आभाव
विदुर नीति (Vidur Niti) में कहा गया है कि जिस व्यक्ति के अंदर त्याग और समर्पण की भावना होती है। वह हमेशा सुखी रहता है लेकिन जो व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है उसे समाज में अपमान सहना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है।
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