Up kiran,Digital Desk : बांग्लादेश में भड़की हिंसा के बीच वहां मौजूद भारतीय कलाकारों के लिए हालात कितने डरावने हो गए थे, इसकी एक सिहरन भरी तस्वीर अब सामने आई है। कोलकाता लौटे युवा तबला वादक मैनाक बिस्वास ने जो बताया, वह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि उस डर की कहानी है जिसे हिंसा के बीच फंसे आम लोग हर पल महसूस करते हैं।
मैनाक बिस्वास ढाका में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए गए थे। शुरुआत में सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन अचानक हालात बदल गए। सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हो गए, तोड़फोड़ होने लगी और माहौल भारत-विरोधी हो गया। जिन सरोद कलाकार के साथ वे गए थे, वे किसी तरह वापस लौट आए, लेकिन मैनाक और बाकी टीम वहीं फंस गई।
उन्होंने बताया कि करीब 48 घंटे तक उन्हें होटल के अंदर ही छिपकर रहना पड़ा। बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं था। जब निकलना जरूरी हुआ, तो भारतीय होने की पहचान छुपानी पड़ी। टैक्सी बुक करते समय नाम बदला गया, स्थानीय नाम अपनाया गया और बातचीत बेहद सीमित रखी गई। मैनाक कहते हैं कि चुप रहना ही उस वक्त उनकी सबसे बड़ी सुरक्षा बन गया था।
कार्यक्रम रद्द, तोड़फोड़ और डर का माहौल
ढाका के धनमंडी इलाके में जिस सांस्कृतिक केंद्र में कार्यक्रम होना था, वहां हिंसक भीड़ ने हमला कर दिया। कार्यक्रम तुरंत रद्द कर दिया गया। परिसर में मौजूद संगीत वाद्ययंत्रों को नुकसान पहुंचाया गया और जमकर तोड़फोड़ हुई। मैनाक बताते हैं कि उस समय सबसे ज्यादा डर इस बात का था कि अगर पहचान खुल गई, तो हालात और बिगड़ सकते थे।
क्यों भड़की हिंसा
बताया जा रहा है कि यह हिंसा इंकलाब मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद भड़की। जुलाई 2024 के आंदोलन से जुड़े इस नेता की मौत के बाद देश के कई हिस्सों में तनाव फैल गया। इसी दौरान मीडिया संस्थानों और सांस्कृतिक केंद्रों को भी निशाना बनाया गया। राजनीतिक अस्थिरता और पुराने विवादों ने माहौल को और संवेदनशील बना दिया।
एयरपोर्ट पहुंचकर मिली राहत
काफी मशक्कत और डर के बाद टीम के बाकी सदस्य एयरपोर्ट तक पहुंचे। कई घंटे लाउंज में बैठे रहना पड़ा, क्योंकि सड़कों पर हालात पल-पल बदल रहे थे। मैनाक को अपने तबले की भी चिंता थी, क्योंकि उन्होंने वाद्ययंत्रों को तोड़े जाने की तस्वीरें देखी थीं। जब कोलकाता एयरपोर्ट पर उनका तबला सुरक्षित मिला, तब जाकर उन्हें असली राहत महसूस हुई।
कोलकाता लौटने के बाद मैनाक ने कहा कि वे जल्द ही मंच पर वापसी करेंगे, लेकिन ढाका में जो देखा और झेला, वह लंबे समय तक उनके मन में रहेगा। भाषा और संस्कृति की समानता के बावजूद ऐसा डर महसूस करना उनके लिए बेहद झकझोर देने वाला अनुभव रहा। हालात पूरी तरह सामान्य होने तक वे दोबारा बांग्लादेश जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।




